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ललित निबंध के रूप में "कुटज"

 ललित निबंध के रूप में  "कुटज"


हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा रचित "कुटज" एक ललित निबंध है । ललित निबंध भाव प्रधान होते हैं लेकिन इसमें विचार तत्व का अभाव नहीं होता । इनमें भावुकता का आधिक्य होने पर भी यह विचारों की |   अंतर्धारा बराबर प्रभावित होती रहती है । द्विवेदीजी ने ललित- निबंधों में से भी भाव और विचार दोनों बराबर - बराबर पाए जाते हैं । और वह अपने भावों के साथ - साथ पाठकों को उसके पीछे अपने भावों से भी परिचित करवा पाते हैं । जिस प्रकार निबंध में कुटज को पढ़ते हुए लगता है कि हम कुटज को पढ़ रहे हैं पर ध्यान से पढ़ने पर हम उसके अंदर मनुष्यता के विषय में कही बातों से परिचित होते हैं । यह ललित निबंध की एक खास विशेषता भी है ।
 
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 भाव - प्रधान

ललित ललित निबंध भाव - प्रधान होते हैं परंतु साथ ही साथ विचारों से भी परिपूर्ण होते हैं ।

नियमों का निर्माता स्वयं लेखक

 इसमें स्वच्छंदता, सरलता, आडंबरहीनता , घनिष्ठता और आत्मीयता के साथ लेखक के  व्यक्तिगत दृष्टिकोण का समावेश रहता है।

 चिंतन प्रधान

 ललित निबंध चिंतन प्रधान होते हैं किंतु निबंध लेखक अपनी प्रवृत्ति, स्वभाव या परिस्थिति के अनुसार भावना को प्रधानता देते हैं। यह पाठक की बुद्धि को प्रेरित कर उसे नए तरीके से चिंतन का आधार प्रदान करते हैं । कुटज में भाव और विचार का आश्रय लेकर ललित शैली में तथ्य और सत्य को आत्मीयता के साथ प्रस्तुत करते हैं । कुटज फूलों वाला  वृक्ष है पर उसका मानवीकरण करते हुए , द्विवेदीजी उसे मित्र, सखा और उससे भी अधिक आदर्श रूप प्रस्तुत करते हैं ।

साहित्यिक विधा

ललित निबंध वह साहित्यिक विधा है , जिसमें भावना और विचारों का समन्वय होता है । इसमें जीवन की वास्तविकता,   कहानी और संवेदना , नाटक की नाटकीयता , उपन्यास की चारू कल्पना , गद्य काव्य की भावातिश्यता , महाकाव्यों की गरिमा एक साथ प्राप्त होते हैं ।


कुटज  एक ललित निबंध

 इसका विषय कुटज है। कुटज हिमालय की उन   श्रृंखलाओं पर उगता है , जिसे  शिवालिक कहा जाता है । इससे  शिवालिक में ज्ञान का प्रकाश है । इसके पश्चात 'नाम' और 'रूप' की सिद्धांतिक व्याख्या है ।और फिर कुटज शब्द की भाषागत के अनुसार व्याख्या है।

 कुटज  मानव - चेतना का रूप

द्विवेदी जी ने कुटज को मानव - चेतना का रूप दिया है । इसके बीच में कालिदास का मेघदूत और उनकी कुटज कुसुमों से मेघ की अभ्यर्थना समाहित है । उनकी आत्मीयता कुटज के साथ समाहित है । कुटज ने कालिदास के संतप्त चित्त को सहारा दिया । इसलिए कभी उसे गाढे़ का साथी भी कहता है । अर्थात जब परिस्थितियां विपरीत होती है उस समय विपरीत परिस्थितियों का साथी ..... कुटज ही है ।

 कुटज का ऐतिहासिक संबंध

 कुटज की प्राचीनता , उसकी व्युत्पत्ति,  उसके विविध आयामों पर शास्त्रोक्त में मिंमासा करने के पश्चात् पुनः प्रकृति लालित्य के मध्य कुटज की प्रतिष्ठा करते हुए प्रतीत होते हैं । वे कुटज को आदर्श चिंतन का प्रवक्ता मानते हैं । वे कहते हैं कि जिस कठोर भूमि में सब कुछ सूख चुका हैं वहां यह कुटज पाषाण की छाती को चीर , जलस्रोत से बरबस  रस खींच कर सरस बना हुआ है । कितनी कठिन जीवन - शक्ति है ।

 स्वच्छंदता

ललित निबंध का एक वैशिष्टय स्वछंदता  है ।स्वच्छंदता ही वह विशेषता है जो निबंध को शास्त्र के बोझ से मुक्त कराती है । स्वतंत्रता का अर्थ अनियंत्रित होना नहीं है अपितु अपनी निजता से मुक्ति है । द्विवेदी जी को कुटच में मुक्तभाव से अपने विचारों को निबंध में स्थान देते हैं ।

 आत्मीयता और आडंबरहीनता

 ललित निबंध में  आत्मीयता और आडंबर हीनता का विशेष स्थान है । इसमें शास्त्रीयत्ता के साथ आत्मीयता का समन्वय होता है । बुद्धि और हृदय इस प्रकार के निबंधों में अलग-अलग राह  पर न चलकर उनमें एकात्मकता पाई जाती है । इसमें रागा िश्रत    व्यंजना होती है, जो पाठक को आकर्षित कर उसे आत्मीयता से बांधे रखती है । पाठक , लेखक और निबंध तीनों ही एक साथ स्वयं रचना में समाहित होते हैं  ।

विषय की अभिन्नता

 विषय के अभिन्नता ललित निबंध के लिए आवश्यक है  । यह एकत्व  और आत्मीयता होने पर वस्तु की अंतरंगता प्रकट होती है । हृदय का हृदय से विनियोग होता है । यह चिंतन को प्रवाह प्रस्तुत करता है तथा भाषा को गतिमान बनाता है, आत्मीयता से भर देता है, शिल्प को वैभव प्रदान करता है और भाषा को सरस व सारगर्भित बनाता है।

 कुटज का वर्णन

  द्विवेदी जी इसमें  कुटज का शानदार वर्णन करते हुए नजर आते हुए कहते हैं ।.... कि कुटज "द्वंदातीत" है अलमस्त है , मुझे अनादिकाल से जानता है , मैं भी इसे अवश्य पहचानता हूं। कुटज चिर - परिचित दोस्त है । वे मानव चेतना व छोटी-छोटी बातों में दुःखी होने वालों से कहते हैं -  जीवन जीना चाहते हो तो कुटज के सामान जिओ , कठोर पाषाण को भेदकर,  पाताल की छाती चीरकर , वायुमंडल को चूसकर , झंझा - तूफान को रगड़कर  , अपनी प्राप्त्य वसूल लो , आकाश को चुसकर, आकाश की लहरी में झूमकर उल्लास खींच लो  । कुटज का यही उपदेश है।

अतः यह कहा जा सकता है कि  कुटज में सहजता, सरलता और रस  की भाषा का प्रयोग किया गया है। यह सभी गुण कुटज में भी विद्यमान है । यह निबंध अपने लघु आकार में एक महाकाव्य के गरिमा को धारण किए हुए हैं  । यह जीवन- शक्ति प्रदान करने वाला है । यह वह कुटज है जो मनुष्य के गाढे़ का साथी है अर्थात जब सब साथ छोड़ देते हैं उस समय   अपने धर्म का निर्वहन करने वाला है यह कुटज ।





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