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"औरत" की कथावस्तु .......... सपदर हाशमी

"औरत" की कथावस्तु .......... सपदर हाशमी


औरत"  एक नुक्कड़ नाटक के रूप में लिखा गया है जो हिंदी के एक विधा है। नुक्कड़ नाटक में वह क्षमता है जो समाज को झकझोड़ कर रख देने का सामर्थ्य रखती है  । नुक्कड़ नाटक के द्वारा हमेशा समाज में हो रहे ज्वलंत मुद्दों को उठाया जाता है तथा दर्शकों का ध्यान उस ओर इस प्रकार उस प्रकार आकृष्ट किया जाता है जिस प्रकार उनका सोच पाना कठिन होता है । नुक्कड़ नाटक मं"च पर अभिनय के लिए नहीं लिखा जाता अपितु इसका प्रदर्शन सड़क , मोहल्लों , चौराहों,  फैक्ट्रियों या विश्वविद्यालयें व शोषण के स्थानों के सम्मुख देखने को मिलता है  । समाज को एक नए तरीके से जागृत करने का सामर्थ्य केवल नुक्कड़ नाटक में है । यह उसके दुष्परिणामों से अवगत कराने तथा नवचेतना निर्माण करने में सहायक है ।


                                                 "औरत" नाटक में नारी जीवन की संपूर्ण  त्रासदी  व अभावों को लक्षित किया गया है । किस प्रकार औरत पर जन्म से लेकर मृत्यु तक पुरुषों का वर्चस्व रहता है और वह अभावों में जीवन काटती है । वह बेटी , मां ,पत्नी , कामकाजी महिला होकर अपना सारे समय काम करनके  बिताने पर भी केवल दुत्कार ही पाती है । उसे समझने वाला कोई नहीं ।

                              "औरत" में दिखाया गया है कि  एक छोटी बच्ची के साथ उसके पिता द्वारा पक्षपातपूर्ण व्यवहार किया जाता है और उसके भाई के प्रति प्रेम - भाव है।  यहां लड़का - लड़की में भेदभाव दिखाई पड़ता है  । वह लड़की  को उसकी मां की तरह मर जाने को कहता है । यह स्त्री का पहला रूप बेटी है जिसमेें उसके जीवन में उसके पिता की प्रभुता होती है । अंत में उसका पिता स्कूल जाने के नाम पर से बर्तन मांजने को कहता है ।

                                          स्त्री का दूसरा रूप पत्नी का है । पति सदैव चाहता है कि उसकी पत्नी उसकी सेवा करें  । उसे दासी की तरह मानता है।  वह उसकी दोस्त या मित्र नहीं हो सकती । उसका कार्य केवल बच्चे पैदा करना तथा उनको संभालना है । यह पति नामक प्राणी उसे केवल दासी के रूप में और अपनी  प्रभुता को मानने वाली के रूप में देखता है । उसका कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं ।

                                                                    तीसरी रूप छात्रा का है । यह वह नारी है जो लड़ - झगड़ कर किसी तरह जीवन के इस स्तर तक पहुंची है । वह पढ़ - लिखकर अपने जीवन का कोई बड़ा उद्देश्य देखती है । परंतु यहां भी गुंडे - बदमाश, यौन - उत्पीड़न ,बेरोजगारी, कम मजदूरी जैसी समस्याओं को उसे सहना पड़ता है । जिस सुरक्षा के लिए उसने शिक्षा ग्रहण करी थी वह भी व्यर्थ  जान पड़ती है।

                                          स्त्री का चौथा रूप वह अनपढ़ स्त्रियां है जो खेतों में काम करती हैं वह मिलों और फैक्ट्रियों में पसीना बहाती है । यहां भी जमीदार व पूंजीपति भूखे- कुत्तों की तरह उसको अपनी वासना का शिकार बनाना चाहते हैं ।

                                                                     इस प्रकार हम इन सभी चीजों का कारण  पितृसत्तात्मक सोच को कह सकते हैं जहां प्रभुत्व पुरुषों के हाथ में है । आज जब नारी पढ़ी- लिखी है । स्वतंत्र रूप से धन कमाकर अपना पालन - पोषण करने में सक्षम है । तब भी यह पुरुष प्रधान समाज उसे अपनी  बेड़ियों में कँसना चाहता है।

                                         औरत नाटक में नारी की दुर्दशा , शोषण ,  उत्पीड़न को दिखाने के साथ  - साथ उसका समाधान भी नजर आता है । आज की नारी बौद्धिक रूप से कुशल ,मानसिक विकास से परिपूर्ण है । वह इस समाज के परिवर्तन में विश्वास रखती है । वह स्वयं को किसी अनुगामिनी के रूप में न देखकर पुरुष की सहचरी के रूप में देखती है । वह जानती है कि वह केवल पुरुष की काम- पूर्ति का साधन नहीं है न ही बच्चे पैदा करने की मशीन और  न  वह अपना संपूर्ण जीवन झूले चूल्हे - चौके में बिताना चाहती है ।

                                                                     इस प्रकार यह नाटक औरत के जीवन के अभावों व सामाजिक व्यवस्था के व्यर्थ नियमों को लक्षित करता है।  नाटककार यह चाहता है कि स्त्री को भी पुरुष के समान बराबरी का अधिकार मिलना चाहिए। उसके महत्ता, गौरव, योगदान , प्रेम को स्वीकार करना होगा  । वे नारी को स्वाबलंबी व आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रेरित करते हैं  । उसे अपने प्रति हुए अन्याय का विरोध करना होगा ।

                                        वह जनता में  इस भाव  को प्रेषित करने तथा जनता का ध्यान उन बातों की तरफ ले जाने  जिसके द्वारा नारी पर कई कई समय से अत्याचार हो रहा था .... ले जाने की कोशिश करता है  । ताकि समाज में जागृति हो और लोग समस्या को स्वीकार करें  । समस्या की स्वीकृति के पश्चात ही उसका समाधान संभव है और इसका समाधान है पौराणिक  रूढ़ियों,  अत्याचारों , सामाजिक आर्थिक उत्पीड़न के प्रति विद्रोह और क्रांति ।

                                                                  इसका समाधान औरत नाटक में भी प्रस्तुत किया गया है । जहॉ औरत क्रांति का लाल झंडा हाथ में उठाकर नारी के प्रति हुए अनाचार , अन्याय का विरोध करती हुई खड़ी है । अर्थात नाटककार कहना  चाहता है कि अपने प्रति हुए अन्याय के लिए औरत को विरोध करना होगा संघर्ष करना होगा।   

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