पंडितराज जगन्नाथ के काव्य लक्षण की विशेषताएं
पंडित जगन्नाथ 17 वी शताब्दी से चले आ रहे पुराने विवाद पर ध्यान दिया। जिसमें काव्य शब्द में होता है या अर्थ में या फिर दोनों में। इस विवाद से वे बचना नहीं चाहते थे। इसलिए उन्होंने बेहिचक भाव से कहा कि काव्य "शब्द" में होता है । रमणीयतार्थ प्रतिपादक शब्द काव्य है । उन्होंने इस का निरूपण इस प्रकार किया:
"रमणीयार्थ प्रतिपादक शब्द: काव्यम" (रसगंगाधर)
अर्थात रमणीय अर्थ का प्रतिपादक शब्द ही काव्य कहलाता है
डॉक्टर प्रेम स्वरूप गुप्त ने अपने शोध प्रबंध में कहा कि पंडित जगन्नाथ ने तीन काव्य लक्षणों को प्रस्तुत किया है । या यूं कहें कि सामान्य, परिष्कृत एवं निष्क्रिय या फलित रूप में काव्य लक्षण को प्रस्तुत किया है।
पंडित जगन्नाथ के अनुसार रमणीय अर्थ का प्रतिपादन करने वाला शब्द, 'काव्य है अर्थात रमणीयार्थ प्रतिपादक शब्द को काव्य कहते हैं । रमणीय अर्थ का धरातल स्थूल या भौतिक नहीं है अपितु सूक्ष्म और मानसिक है। 'रमणीयता' ही 'ज्ञानगोचरता' है। वह हमारे ज्ञान का विषय बनती है अर्थात रमणीय वस्तु हमारे ज्ञान में काव्यानुभूति में आकर लोकोक्तर अहलाद की सृष्टि करती है। बार-बार अनुसंधान करने से ही यह रमणीय अर्थ प्राप्त होता है।
पंडितराज ने लोकोक्तरता से अलौकिकता का अर्थ ना लेकर सहृदय को चमत्कृत करने वाले अर्थ को लिया है। यह अलोकिकता ब्रह्मानंदमय कर देने वाली अलौकिकता है। इसमें चमत्कृत कर देने वाले वाली रमणीयता है। जिसे सुनकर सबके मन खिल उठे और एक डोर से बधकर उस भाव को एक समान चमत्कृत हो उठे। जिस अर्थ को सुनकर मन चमत्कृत हो जाए वह अर्थ यहां रमणीय कहा गया है।
राजवंश सहाय हीरा ने अपनी पुस्तक "भारतीय आलोचना शास्त्र" में लिखा है कि उदाहरण के लिए यदि यह कहा जाए कि 'आपको पुत्र हुआ है' इसलिए 'आपको धन दूंगा' तो इस प्रकार के वाक्य से बार-बार अन्वेषण के हर्ष या आनंद होगा पर वह आनंद अलौकिक ना होकर लौकिक होगा , अर्थात उस वाक्य से केवल उसे ही आनंद होगा जिसे पुत्र हुआ है इसलिए यहां आनंद एक सीमा में बंधकर रह जाएगा।
यह सार्वजनिक आनंद उपलब्धि का कारण नहीं बनेगा । इसी के विपरीत जब हम दशरथ पुत्र राम के जन्मोत्सव का वर्णन "रामायण" में सुनते हैं तो दशरथ नंदन 'राम' के जन्म से मिलने वाले आनंद की सीमा नहीं रहती। सब उस क्षण में आनंद विभोर हो एक सूत्र में जुड़ अलौकिक आनंद की अनुभूति को प्राप्त करते हैं।
अत: काव्यानंद, साधारण आनंद से इसी प्रकार भिन्न है, जिस प्रकार अलौकिक आनंद , लौकिक आनंद से । इस आनंद की प्राप्ति रमणीय अर्थ वाले शब्दों के कारण होती है। काव्य में सभी शब्द रमणीय अर्थ देने वाले नहीं होते, अर्थ के प्रतिपादक होते हैं।
सामान्य भाषा के शब्दों के प्रतिपादक अर्थ से काव्य का प्रतिपाद्य अर्थ भिन्न प्रकार का होता है। वह हृदय को भावविभोर कर देने वाला होता है। सामान्य भाषा के शब्द तो साधारण या सामान्य अर्थों के ही द्योतक होते हैं पर काव्य के शब्दों में चमत्कार आह्लाद प्रदान करने की अपूर्व शक्ति है। अभिप्राय है कि शब्द के सामान्य अर्थ रमणीय अर्थ तक ले जाने वाले साधन है ।
पंडित जगन्नाथ के काव्य लक्षण के अनुसार जिस शब्द के द्वारा प्रतिपादित अर्थ विषयक भावना चमत्कार पूर्ण बन सके वह काव्य है । पंडित जगन्नाथ का अभिप्राय है कि जब रमणीय अर्थ विशिष्ट शब्दों के द्वारा प्रकट हो तब उसे काव्य कहा जाएगा, जो लोकोक्तर् आनंद का जनक होगा। रमणीय काव्यार्थ शुद्ध मानसिक धरातल पर ही प्राप्त होता है। पंडित जगन्नाथ विशिष्ट शब्दवादी है और वह केवल शब्द को ही काव्यतत्त्व प्रदान करते हैं, शब्दार्थ को नहीं। पंडितराज का काव्य लक्षण अपनी व्यापकता के कारण ही आज भी दहुतो को ग्राहय है।कहा जा सकता है कि पंडित राज का काव्य लक्षण नकारने की चीज नहीं है , अपितु नए युग संदर्भ में भी विचारणीय है।
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