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अंधा युग के चरित्रों की प्रतीकात्मकता

 अंधा युग के चरित्रों की प्रतीकात्मकता




अंधा युग एक पौराणिक नाटक ही ना होकर आज के आधुनिक काल के चरित्र को सामने रखने की क्षमता रखता है  । समय बदल गया काल बदल गया है परंतु परिस्थितियाँ आज भी वही है  । कई बार सृष्टि के नष्ट हो जाने पर सृष्टि किस प्रकार पुनः सृजन करती है अंधायुग नाटक के माध्यम से हम जान पाते हैं ।
   
 
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   दूसरे विश्वयुद्ध के पश्चात संसार एक प्रकार की थी दुविधा में आ गया और इस  दुविधा का समाधान सबसे पहले साहित्य बताता है । साहित्य के द्वारा ही हम पुराने इतिहास को जानकर नवनिर्माण की ओर अग्रसर हो पाते हैं । अंधा युग नाटक इसी प्रकार का एक प्रतीक  काव्य नाटक है । दूसरे विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद जो साहित्य में आया उसमें दुःख , विनाश , अहं , दुश्चिंता दिखाई देती है , पश्चिम ने ऐसा अनुभव कर लिया जैसे हो किसी ऐसे  चक्र में फँस गया है जहां से निकलना किसी प्रकार  भी संभव नहीं  । राजनीति व साहित्य में घोर अंधेरापन छाने लगा  , द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात देश , विदेश , राजनीति , साहित्य , समाज  ,सत्ता हर किसी में प्रतीक रूप से अंधा युग ही दिखाई पड़ता है ।

                                     झूठे लोग नाम , धन , ऐश्वर्य कमा रहे हैं और सत्य कहने वालों की दुर्दशा हो रही है  । यह समाज में अंधायुग का ही प्रतीक है । रूपए - पैसे वाले  लोगों के लिए कानून एक मजाक बनकर  रह गया है  । इस तरह से देखा जाए तो "महाभारत का अंधा युग"  आज से कुछ दिन पूर्व आज के पश्चिमी और भारतीय साहित्य तथा राजनीतिक विषमता का योग प्रतीत होता है  ।

अश्वत्थामा  

 इस नाटक में प्रमुख पात्र अश्वत्थामा है जो अपमानजनक दुर्दशा का शिकार होता है  । वह पूंजीवादी के परिणामस्वरूप  उभरने वाला हिंसक पाशविकता  का प्रतीक है  । नास्तिक अस्तित्ववाद का भी वह प्रतीक है ।
                 
               युद्ध क्षेत्र में हाथी अश्वत्थामा के मारे जाने पर गलत उद्घोषणा से उसके पिता को लगे आघात को वह जानता है  । वह अंधे धृतराष्ट्र  की  मरणोन्मुख संस्कृति का पक्षधर है  । पिता की हत्या से उसका अंह जागृत हो उठता है और वह पशुवत व्यवहार करता है  । वृद्ध याचक  भविष्य की हत्या कर बैठता है ।  उसके अस्तित्व का अंतिम अर्थ केवल वध है ।उसकी नस - नस में अंधायुग बैठा हुआ है ,अंधी प्रतिहिंसा वह पागलपन है ।

गांधारी 

 गांधारी जो एकमात्र प्रत्यक्ष नारी चरित्र के रूप में नाटक में विद्यमान है  । वह और धृष्टराष्ट्र अश्वत्थामा के व्यक्तित्व को संरक्षण देते हैं । गांधारी कटु यथार्थवादी , सत्ता में खोई हुई और जानबूझकर अंधी है  ।
 

 धृतराष्ट्र

 धृतराष्ट्र अंधा व स्वार्थी शासक है । वह इतना अंधा है कि उसको अपने पुत्र के किसी कर्म से कोई शिकायत नहीं  होती ।  विदुर अहिंसावादी विचारधारा का प्रतीक है  ।  युधििष्ठर पेशेवर राजनीतिज्ञों का प्रतीक है । न तो जनता उनके राज्य में कुछ सुखी है और न उनके पहले के राज्य में ही सुखी थी ।

संजय 

 संजय  तटस्था का प्रतीक है  । साथ ही वह कौरवों के पक्ष में कोई आलोचना नहीं करता और सारे युद्ध का वर्णन करता दिखाई पड़ता है  । उसने सत्य कहने की प्रतिज्ञा ली है फिर भी वह कौरवों की आलोचना से बचता हुआ दिखाई पड़ता है । संजय का अश्वत्थामा गला घोंटता है । यह इस बात का प्रतीक है कि वह सत्य का आश्रय लेने वाले व्यक्ति का मानव - पशु गला घोंटता है ।  जिस प्रकार आज अमीर , राजनेता गरीब लोगों का शोषण कर उनका गला घोंट रहे हैं । इसमें रहस्यवादिता  का प्रतीक भी दिखाई देता है।

युयूत्सु - 

युयूत्सु  आत्मघाती अंधता का प्रतीक है । युयूत्सु इस बात का प्रतीक है कि किस प्रकार बुरे घर में भी अच्छा बालक जन्म लेता है और सबसे विद्रोह कर सत्य का साथ देता है परंतु वह अच्छा करके भी बुरा फल प्राप्त करता है जिससे उसका मन ग्लानि से भर उठता है । गूंगा भिखारी आज के युद्ध - विकलांगों का प्रतीक है । व्यास शांतिकामी साहित्यकार और नेता का प्रतीक है । बलराम उग्रतावादी निष्क्रिय शक्ति के प्रतीक हैं  ।


 वृध्द याचक - 

वृध्द  याचक  आज के  अवसरवादी ज्योतिषियों का प्रतीक है । साथ ही वह लेखक के दृष्टिकोण का प्रतीक है ।

पहरी  - 

यह दोनों पहरी दासवृति के प्रतीक हैं जनता के प्रतीक हैं  । वे कहते हैं नृप चाहे कोई भी हो हमें कोई हानि होने वाली नहीं जो आलस्य मई प्रवृत्ति का प्रतीक है।

 कृष्ण  -

 कृष्ण मानव - मूल्यों व दिव्य चेतना का प्रतीक है । मानव - मूल्य की प्रतिष्ठा द्वारा ही मानव - भविष्य सुरक्षित रह सकता है। जिसकी सुरक्षा श्रीकृष्ण करते दिखाई पड़ते हैं ।


 इस प्रकार अंधा युग के प्रायः सभी पात्र प्रतीकात्मक है तथा प्रभु - मरण , अश्वत्थामा एवं दुर्योधन पाश्विक  चरित्र , युयूत्सु - अंधत्व सभी घटनाएं अपना प्रतीकात्मक अर्थ रखती है । कृष्ण और व्यास की मानव भविष्य के प्रति चिंता आज भी दिखाई पड़ती है क्योंकि दो राष्ट्रों का संघर्ष व संकट पूरे विश्व में दिखाई पड़ता है इस प्रकार अंधायुग एक प्रतीकात्मक काव्य है ।

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1 Comments

  1. अंधायुग ..आज के समाज में व्याप्त सच्चाई🌍🧭

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