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'SWATANTRTA KE BAAD HINDI KHANIYO KA KARMIK VIKASH' , 'स्वातंत्र्योत्तर हिंदी कहानी' , 'HINDI KAHANIYO KA KARMIK VIKASH'

स्वातंत्र्योत्तर हिंदी कहानी

               


स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात लेखक ऐसी रचनाएं कर रहे थे जो समाज के उत्थान की ओर ले जा रही थी । नई कहानी कारों की एक ऐसी पीढ़ी तैयार हुई कि उसने हिंदी कहानी की वस्तु शिल्फ और संचेतना में व्यापक परिवर्तन ला दिया। इस प्रकार हिंदी कहानियां नए-नए रूप रंगो में परिवर्तित होती चली गई । हिंदी कहानियों को उत्थान  की तरफ ले जाने के लिए समय-समय पर कई आंदोलन हुए जिन्होंने हिंदी कहानियों को नई समृद्धि दृष्टि और कलात्मक  ऊंचाई भी दी।

 नई कहानी : आंदोलन की शुरुआत

 नई कहानी आंदोलन में कहानी के पारंपरिक प्रतिमानों को नकार दिया गया और अपने मूल्यांकन के लिए नई कसौटियॉ निर्धारित की गई। उस समय स्वतंत्रता मिल जाने पर भारतीय मानस में एक नई चेतना , विश्वास और आशा थी। उसे एक बदला हुआ यथार्थ मिला। जिसने उसे नया संदर्भ में प्रदान किया। नए कहानीकारों ने 'परिवेश की विश्वसनीयता' , 'अनुभूति की प्रमाणिकता' और 'अभिव्यक्ति और ईमानदारी' का प्रश्न उठाया और यह बताया कि नई कहानी यथार्थ से जुड़ी हुई है । जिसका मूल उद्देश पाठक को यथार्थ से परिचित करवाना है । नई कहानी आंदोलन की अगुवाई तीन महान लेखक - राजेंद्र यादव , मोहन राकेश , कमलेश्वर कर रहे थे  नई कहानी में स्थूल  कथानको के  स्थान पर सूक्ष्म कथा तंतुओं का प्रधानता मिली । सांकेतिकता, प्रतीकात्मक  और बिम्बात्मकता का प्रधान्य हुआ । नई कहानी ने समाज को एक नई चेतना का मार्ग दिया इसके प्रमुख हैं - धर्मवीर भारती ,  रांगेय राघव , राजेंद्र यादव , बलवंत सिंहलेखक ।

सचेतन कहानी  अकहानी और सहज कहानी


सन् 1950  के बाद हिंदी कहानी नए मार्ग पर चल पड़ी। उसमें कथ्य और शिल्प तथा राजनीतिक उठापटक भी थी । इस समय दो प्रकार की कहानियां सामने आती है । जिसमें या तो मूल्यवादी स्वर था या विघटित मूल्यों के परिवेश की जनता व पीड़ा । सातवें दशक की कहानियों में आधुनिक भावबोध को अधिक महत्व मिला है । इस समय छोटे-मोटे कहानी आंदोलन हुए जिनसे कुछ अच्छे कहानीकार उभर कर सामने आए।

 सचेतन कहानी

सचेतन कहानी की मुख्य विशेषता यह है कि इसने प्रचलित रूप से जीवन में सक्रियता , आशा , आस्था और संघर्ष का भाव संचालित करने पर बल दिया और प्रतिगामी मनोदशाओं का निषेध किया । नई कहानी की आत्मपरकता और रूपवादी प्रवृत्ति के विरोध में सचेतन कहानी का आंदोलन आधार पत्रिका के साथ डॉक्टर महीप सिंह ने चलाया। उन्होंने लिखा सचेतनता एक दृष्टि है जिसमें जीवन जिया भी जाता है और जाना भी जाता है। इस प्रकार सचेतन कहानी सक्रिय भाव बोध की कहानी है। जिसका संबंध जर्मनी के एक्टिविस्ट मूवमेंट से भी है। इसके प्रमुख लेखक महीप सिंह, मनहर चौहान, रामदरश मिश्र , नरेंद्र कोहली हैं।

 अकहानी

 सन् 1960 के बाद   नयी  कहानी खुद अपने रूढ़ियों में फंसती चली गई और 'अकहानी' का स्वर तेज हुआ ।जिसका आधार था - नई कहानी की भोगे हुए यथार्थ अनुभव की प्रमाणिकता और प्रतिबद्धता जैसे खोखले नारों के प्रति सशक्त कार्यवाही । इस आंदोलन की अगुवाई गंगा प्रसाद विमल कर रहे थे। अकहानी ने स्वीकृत कथा आधारों का निषेध किया तथा किसी भी तरह की मूल्य -  स्थापना के अस्वीकार का संकल्प लेकर आगे बढ़ी। इसमें बड़ी तन्मयता के साथ उस समय के मनुष्य की पीड़ा , कुंठा , व्यर्थताबोध ,नगण्यताबोध  का चित्रण करके यथार्थ चेतना को दिखाने का प्रयास किया गया।
अकहानी के शिल्प के में कुछ नए प्रयोग किए जिन्हें अनदेखा नहीं किया जा सकता। इन कहानियों में कथा तत्व नहीं के बराबर है। घटनाएं और ब्यौरे भी असत्य हैं। इन सबके चलते हिंदी अकहानी जटिल और दुबोर्ध होती चली गई और उसमें कथा रस गायब हो गया । इसके प्रमुख लेखक हैं  - जगदीश चतुर्वेदी  , श्रीकांत वर्मा , राजकमल चौधरी

 सहज कहानी

सन् 1968 में नयी कहानी पत्रिका के माध्यम से अमृत राय ने सहज कहानी की संकल्पना को सामने रखा ।उसकी व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा - "मोटे रूप में इतना ही कह सकते हैं कि सहज वह है जिसमें आडंबर नहीं है बनावट नहीं है , ओढा़ हुआ मैनरिज्म   या मुद्रा दोष नहीं है, आईने के सामने खड़े होकर आत्मरति के भाव से अपने ही अंग - प्रत्यंग को अलग- अलग कोणों से निहारते रहने का प्रबल मोह नहीं है , किसी का अंधानुकरण नहीं है" । उनकी इस धारणा से आंदोलन भले ही ना खड़ा हुआ हो लेकिन कहानी में सहजता की वकालत को कम करके नहीं आंका जा सकता है।
                           

 सामांतर कहानी

सन् 1947 में सामांतर कहानी का आंदोलन चला । जिसके अगुआ थे  नयी कहानी के सशक्त हस्ताक्षर और सारिका पत्रिका के संपादक कमलेश्वर । इस समय देश के चारों तरफ जनान्दोलनों का  बोलबाला था  । आम आदमी पूंजीवादी शक्तियों के चंगुल में फंस कर रह गया था और जनवादी ताकतों को कुचलने के लिए श्रीमती गांधी पूरी तरह कटिबद्ध थी। यह आंदोलन उनके विरोध में खड़ा हुआ था।
 
समांतर कहानी की सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही कि उसने भावुक रूचि में कैद लोगों के सामने आम आदमी की तकलीफों को उजागर करने वाली कहानियों को बदलते तेवर में प्रस्तुत किया । समांतर कहानी ने आम आदमी को प्रतिष्ठित किया उसके प्रति जागरूकता पैदा की और कहानी को आम आदमी के संघर्ष से जोड़कर नई हलचल पैदा की । इसके प्रमुख लेखक हैं -  सतीश जायसवाल  , अकुलेश परिहार , कमलेश्वर , जितेंद्र भाटिया

 सक्रिय कहानी

  राकेश वत्स ने अपनी पत्रिका 'मंच - 79' के माध्यम से सक्रिय कहानी का आंदोलन खड़ा किया जिसमें चित्रा , मुद्गल , रमेश बत्तरा,  वीरेंद्र  मेहंदीरत्ता , स्वदेश दीप आदि ने भाग लिया। सक्रिय कहानी के संघर्षरत पात्र जन समर्थन मूल्यों के पक्षधर थे । शोषण से मुक्ति पाना उनके संघर्ष का चरम फल है । यह कहानी आंदोलन अल्पकाल में समाप्त हो गया क्योंकि इसमें वैचारिकता का दंभ अधिक था , रचनात्मकता बिल्कुल नहीं थी।

प्राणधारा की कथावस्तु(link 🔗)

 जनवादी कहानी

 सन् 1982 में दिल्ली में जनवादी लेखक संघ की स्थापना हुई । इस समय जनवादी कहानियों का उदय हुआ जनवादी आंदोलन अन्य आंदोलन की तरह सहसा नहीं उठ खड़ा हुआ बल्कि एक लंबे अरसे से उसकी पृष्ठभूमि तैयार हो रही थी । जिसके पीछे प्रेमचंद की  जनपक्षधरता के विचार थे।

 यह कहानीकार जन संघर्ष के पक्षधर थे तथा उस का वैचारिक आधार मार्क्सवाद था। मध्यम वर्ग और सर्वहारा के बीच निकटता अनुभव करना प्रेमचंद की एतिहासिक समझ का परिणाम था । यह संघर्ष बहुआयामी था। जनवादी कहानी में संघर्षरत पात्र निर्णय लेने की स्थिति में हैं। वे अपने अधिकारों के प्रति पूर्ण सजग और संघर्षरत  थे । जनवादी कहानी की मूल प्रवृत्ति श्रमजीवीओं के प्रति सहानुभूति थी । इसके प्रमुख लेखक हैं  - रमेश उपाध्याय , रमेश बत्रा , स्वयं प्रकाश , नमिता सिंह , हेतु भारद्वाज .

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