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श्रीकांत वर्मा की कविताओं में इतिहास और वर्तमान में द्वंद

श्रीकांत वर्मा की कविताओं में  इतिहास और वर्तमान में द्वंद



   परिचय:-

                            श्रीकांत वर्मा का जन्म एक कायस्थ परिवार में 18 सितंबर 1931 को हुआ था  । श्रीकांत का रचनाकार जीवन बड़े शहर की चकाचौंध से दूर मध्यप्रदेश में संपन्न हुआ । मध्यप्रदेश कविता और साहित्य में आधुनिक संवेदना के लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण था  , क्योंकि यही मुक्तिबोध और हरिशंकर परसाई भी लिख रहे थे।
               यह स्वाधीनता संग्राम का समय था तथा राजनीतिक दृष्टि से भी काफी सजगता और सक्रियता से भरा हुआ था । हर रचनाकार ने खुद को किसी न किसी तरह मार्क्सवाद से जोड़ा हर रचनाकार को समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी को का बोध था।

       श्रीकांत वर्मा अपने युग और समाज को देख रहे थे । 1960 में उन्होंने भुखमरी , असहायता से उत्पन्न मृत्यु को इस प्रकार देखा जिसको कई नामों से पुकारा जा सकता था  । अपनी पहली कविता - संग्रह  "भटका मेघ " में उन्होंने उन साहित्य प्रवृत्तियों पर आक्रमण किया जो  'आज के साहित्य'  को 'व्यक्तित्व की खोज'  भी परिभाषित करना चाहती थी । श्रीकांत वर्मा इस अभाव को वाणी देना चाहते थे ।

           श्रीकांत वर्मा ने अपनी कविता में मानव - यात्रा , मानव - संघर्ष का चित्रण नहीं किया । श्रीकांत वर्मा मोटे तौर पर वामपंथी , रुझान के बावजूद मार्क्सवादी थे और मनुष्य को सामाजिक इकाई मानने के बाद भी उनके सामने वह संगठित जनशक्ति स्पष्ट ना थी जो उनके युग बंधनों में जकड़े मनुष्य को पूंजीवादी अलगाव और उत्पीड़न से मुक्ति दिलाने का आश्वासन हो सकती थी ।

कविताओं में इतिहास और वर्तमान का द्वंद

           इतिहास - बोध पात्र चिंतकों या दार्शनिकों के लिए ही नहीं ; कवि के लिए भी आवश्यक है ? लेकिन कितना और किस प्रकार इसका जवाब - मगध का प्रकाशन था । 'मगध' की कविता को पढ़ने के बाद यह माना जा सकता है कि यह एक "सर्जनात्मक अंतराल" था । 'मगध'  की कविताओं में इतिहास की स्मृतियां , ऐतिहासिक स्थल  , ऐतिहासिक व्यक्तित्व जीवंत चरित्रों की भूमिका में हैं  । श्रीकांत वर्मा अपने काव्य 'भटका मेघ' ,मगध  तथा अन्य काव्यों में इतिहास और वर्तमान का द्वंद देखने को मिलता है ।

 ऐतिहासिक प्रसंगों को समकालीन बनाने की चेष्टा

                      "मगध"  में कवि ने इतिहास की स्मृतियों ,  ऐतिहासिक स्थल , ऐतिहासिक व्यक्तित्व जीवंत चरित्रों की भूमिका का प्रयोग किया है । कवि की चेष्टा उनका नया मिथक खड़ा करने की नहीं थी ।उसने एक जटिल रचनात्मक विधि से ऐतिहासिक प्रसंगों को समकालीन बनाने की चेष्टा की है  । लेकिन ऐसा करते हुए वह "प्रसंगिकता"  के प्रलोभन से खुद को बचा ले जाते हैं । और इस प्रकार 'मगध' ने प्रकाशन ने हिंदी साहित्य समाज को स्तंभित कर दिया  ।

प्रभाविकता

                       जब श्रीकांत वर्मा ने अपने मित्रों के सामने यह काव्य पढ़ा तो वह   उन्हें प्रलाप जैसी लगी । उनमें कोई अर्थ कुछ पाना कठिन था किंतु वे  असम्बध्द भी प्रतीत होती थी । धीरे-धीरे उनका असर होना शुरू हुआ तो यह मानना पड़ा कि भले ही सबकी समझ में अभी भी न आई हो  ; किंतु प्रभावित उन्होंने सबको किया है।

राजनीतिक ता सामाजिकता दार्शनिकता

      मगध में जादुई वातावरण को दिखाया गया है ।जिसके सारे पात्र ऐतिहासिक पात्र सक्रिय हैं लेकिन ऐसा लगता है मानो अतीत और वर्तमान आमने - सामने खड़े हो  , किंतु इस खेल में गंभीर राजनीतिक ,  सामाजिक और दार्शनिक आशय निहित है ।

मानवीय / नैतिक प्रश्न

        "मगध" की कविताएं अलग-अलग लिखी गई है  , लेकिन एक साथ पड़ने पर वे कुछ शाश्वत मानवीय प्रश्न भी उठाती हैं  । "मित्रों के सवाल" कविता का प्रश्न है :-
 मित्रों !
 यह रहना कोई अर्थ नहीं रखता
कि मैं वापस आ रहा हूं
सवाल यह है कि तुम कहां जा रहे हो ?
 मित्रों  !
यह कहने का कोई मतलब नहीं
 कि मैं समय के साथ चल रहा हूं
सवाल यह है कि समय तुम्हें बदल रहा है
 या तुम
समय को बदल रहे हो ?

चुनौती  स्वीकार करने की इच्छा

               "मगध"  की अधिकतर कविताएं मनुष्य की विफलताओं की गाथा सी लगती हैं । लेकिन उनमें चुनौती स्वीकार करने की इच्छा भी है , स्थिति को बदल पाने का एक विश्वास भी है नया रास्ता खोजने का एक हौसला भी ।

ट्रैजिक संवेदना का सूत्र

                "मगध" में कवि ट्रैजिक संवेदना का सूत्र पकड़ता है और उसे वर्तमान तक खींच लाता है । यह किसी भी पाठक के विशेषकर भारतीय  , मन में एक नए ढंग से प्रभाव की सृष्टि करने में सफल होती हैं । कुछ कविताएं तो इतने स्पष्ट है कि लगता है कि कवि अपनी समकालीन राजनीति पर सीधा प्रहार कर रहा है ।


समर्पण हेतु तत्पर

              श्रीकांत वर्मा समाज के लिए स्वयं को दावे पर लगाने की बात कहते हैं  ।अमानवीयता  से भरे इस समय में कुछ भी सकारात्मक करने में स्वयं व्यक्ति का जो नाश होता है  , उसके लिए तैयार रहने के लिए साहस होना चाहिए । श्रीकांत वर्मा जैसे यह संकल्प करते नज़र आते हैं । वे कहते हैं कि जिस अभिशाप को मैंने भोगा,  वह उनेक जैसे  सहस्त्रों लोगों की नियति है  । कुछ न कर पाने का दुखद अहसास अनिश्चय  से भरा यह व्यक्ति जो कर सकता है ; वह भी नहीं कर पाता । वह कोई प्रयास नहीं कर पाता , कोई निर्णय नहीं ले पाता ।

                   इस प्रकार हमें श्रीकांत वर्मा के काव्य में इतिहास और वर्तमान में  द्वंद देखने को मिलता है । यह कुछ भी ना कर पाने वाला असमर्थ व्यक्ति शायद निम्न - मध्यमवर्गीय  युवा है जो अपने ऊपर होने वाले आक्रमण का कोई उत्तर नहीं दे पाता ।

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1 Comments

  1. ☘️सरल सुन्दर अभिव्यक्ति☘️

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