भाषा और शैली की दृष्टि - धोखा
"धोखा" हिंदी साहित्य की एक विशेष विधा में लिखा गया है जिसे निबंध कहते हैं । निबंध का प्रारंभ हिंदी साहित्य के आधुनिक युग में हुआ। भारतेंदु हरिश्चंद्र को हिंदी निबंध विधा का जनक माना जाता है । उन्होंने गद्य लेखन को प्रोत्साहन दिया ।आगे चलकर प्रताप नारायण मिश्र ने भारतेंदु के बाद नवजागरण के कार्य को आगे बढ़ाया । मिश्र जी ने अनेक एवं विविध विषयों पर निबंध लिखें।
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"धोखा" मिश्र जी की एक ललित निबंध है । जिसमें उन्होंने धोखा कैसे इंसान को दुखी होने पर मजबूर कर देता है तथा उसके वास्तविक जीवन से दूर ले जाकर उसे दूसरे के साथ धोखा करने के लिए भी प्रेरित करता है । यह कैसी विडंबना है कि एक छल का बदला दूसरा भी छल से लेकर किसी तीसरे को छलता है । मिश्र जी के निबंधों में सरलता तथा रोचकता पाई जाती है। उनका यह मानना था कि मानव सदैव सत्य असत्य में उलझा रहता है। हर मनुष्य अलग-अलग प्रकार से सत्य को स्वीकार करता है । जैसे कोई इस संसार को ही सत्य समझता है और कोई इस संसार से अलग जिसे कभी देखा ना गया हो उसे सत्य समझता है । इसी कारण वे कहते हैं - बहुत ज्ञान छांटना भी सत्यानाश की जड़ है । वे कहते हैं मनुष्य रूपी अवतार लेने पर तो श्रीराम भी धोखा खा गए जब ईश्वर जिसने इस मायाजाल की रचना की है अपने अवतार रूप में धोखा खा सकते हैं तो हम क्यों नहीं? वह निबंध को बहुत रोचकता के साथ लिखते हैं जिससे उसमें प्राण आ जाता है । उसको प्रभावी बनाने के लिए वह विभिन्न भाषा शैलीयों का प्रयोग करते दिखाई पड़ते हैं:-
अतः कहा जा सकता है कि मिश्र जी की भाषा शैली बहुत ही प्रभावी और रोचकता के साथ विभिन्न जीवन संदर्भों से भरी हुई है। धोखा निबंध में भाषा पर विचार करते हुए उसकी जीवंतता, रचनात्मकता और सहजता को रेखांकित किया गया है । "धोखा" निबंध की शैली के बारे में लिखा गया है कि इस निबंध की शैली पर वैचारिक निबंध और भावात्मक निबंध का प्रभाव है लेकिन यह ललित निबंध के अधिक नजदीक है।
"धोखा" मिश्र जी की एक ललित निबंध है । जिसमें उन्होंने धोखा कैसे इंसान को दुखी होने पर मजबूर कर देता है तथा उसके वास्तविक जीवन से दूर ले जाकर उसे दूसरे के साथ धोखा करने के लिए भी प्रेरित करता है । यह कैसी विडंबना है कि एक छल का बदला दूसरा भी छल से लेकर किसी तीसरे को छलता है । मिश्र जी के निबंधों में सरलता तथा रोचकता पाई जाती है। उनका यह मानना था कि मानव सदैव सत्य असत्य में उलझा रहता है। हर मनुष्य अलग-अलग प्रकार से सत्य को स्वीकार करता है । जैसे कोई इस संसार को ही सत्य समझता है और कोई इस संसार से अलग जिसे कभी देखा ना गया हो उसे सत्य समझता है । इसी कारण वे कहते हैं - बहुत ज्ञान छांटना भी सत्यानाश की जड़ है । वे कहते हैं मनुष्य रूपी अवतार लेने पर तो श्रीराम भी धोखा खा गए जब ईश्वर जिसने इस मायाजाल की रचना की है अपने अवतार रूप में धोखा खा सकते हैं तो हम क्यों नहीं? वह निबंध को बहुत रोचकता के साथ लिखते हैं जिससे उसमें प्राण आ जाता है । उसको प्रभावी बनाने के लिए वह विभिन्न भाषा शैलीयों का प्रयोग करते दिखाई पड़ते हैं:-
गद्य निर्माण का युग
हिंदी में भारतेंदु युग को हिंदी गद्य के निर्माण का योग भी कहा जाता है । इससे पूर्व सभी साहित्यिक रचना पद्य में हुआ होती थी। 19वीं सदी में गद्य लेखन के विकास में पत्र-पत्रिकाओं की अहम भूमिका रही । निबंध को गद्य की कसौटी माना गया । लेखकों को निबंध के जरिए अपनी बात कहने में रचनात्मकता को व्यक्त करने में ज्यादा संभावना नजर आ रही थी। यही कारण है कि युग का निबंध साहित्य अत्यंत समृद्ध है।स्वतंत्रता
निबंध में लेखकों को भाषा के साथ रचनात्मक खिलवाड़ करने की ज्यादा स्वतंत्रता स्वतंत्रता नजर आती थी । जिससे उनकी भाषा शक्ति का अनुमान लगाना सहज हो पाता था । "धोखा" का निबंध प्रतापनारायण मिश्र की भाषण भाषिक शक्ति का बहुत अच्छा उदाहरण है ।जीवंतता
मिश्र जी की भाषा की बड़ी विशेषता है- जीवंतता । वह अपनी बात बहुत सहज रूप में कह देते हैं। उनको कभी शब्दों का अभाव नहीं खटकता । बात के अनुसार उनके वाक्य निर्मित होते जाते हैं ।अलंकारों का प्रयोग
"धोखा" में मिश्र जी द्वारा अनुप्रास और रूपक अलंकारों का प्रयोग करके निबंध को काव्यमय बना दिया है । जैसे :-अनुप्रास :-
भ्रमोत्पादक भ्रमस्वरूप भगवान के बनाए भव में जो कुछ है वह भ्रम ही है।
रूपक :-
घड़ी के जब तक सब पुर्जे दुरुस्त है , और ठीक-ठाक लगे हुए हैं ,तभी तक उसमें खट - खट, टन -टन आवाज आ रही है । जहां उसके पुरजों का लगाव बिगड़ा नहीं , न उसकी गति है , न शब्द है।
खट -खट और टन -टन ने इसमें प्राण भर के इसे काव्यमय बना दिया है।कहावतें और मुहावरे
धोखा निबंध में मिश्र जी ने बहुत कहावतों और मुहावरों का प्रयोग कर निबंध को रोचक बना दिया है । जैसे - कलई खुलना , प्रपंच रचना, नाक भौंह सिकोड़ना , खेल बिगाड़ना आदि ।संस्कृत पदों का प्रयोग
कई बार में मिश्र जी पौराणिक बातों का सहारा लेकर समाज में व्याप्त बुराइयों पर तंज कसते हैं । जैसे नारि नारि सब एक है जस मेहरी तस माय । इसी तरह सूर, तुलसी की काव्य पंक्तियां या संस्कृत पदों का प्रयोग भी मिश्र जी की भाषा शक्ति को बढ़ाते हैं ।शब्द भंडार
मिश्रा जी निबंध को रोचक और जीवंतता प्रदान करने के लिए शब्द भंडार का प्रयोग करते हैं । जिसमें मुख्य रुप से तत्सम , तद्भव , अरबी- फारसी , देशज , उर्दू शब्द मुख्य रूप से सम्मिलित है।गद्य भाषा
मिश्र जी की भाषा भारतेंदु युग की भाषा है जिसका अभी पूरा मानकीकरण नहीं हुआ है । यही कारण है कि इस निबंध में , 'तो' के स्थान पर तौ , 'स्वर्ण' की जगह सुवर्ण , 'रखे' के स्थान पर रक्खे का प्रयोग दिखता है।लोक भाषा का प्रभाव
धोखा निबंध में मिश्र जी पर स्थानीय लोकभाषा का प्रभाव भी स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। जैसे मुड़ियावें, बहुतेरों व सुकुड़ , होइएगा आदि शब्द मिलते हैं।लंबे और छोटे वाक्य
मिश्र जी लंबे और छोटे दोनों प्रकार के वाक्यों का प्रयोग निबंध में कहते हैं लंबे वाक्यों को भी समझने में किसी प्रकार की कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ता । उनके लेखन में एक अलग प्रकार की विशेषताएं जिससे निबंध में सार्थकता जान पड़ती है।अतः कहा जा सकता है कि मिश्र जी की भाषा शैली बहुत ही प्रभावी और रोचकता के साथ विभिन्न जीवन संदर्भों से भरी हुई है। धोखा निबंध में भाषा पर विचार करते हुए उसकी जीवंतता, रचनात्मकता और सहजता को रेखांकित किया गया है । "धोखा" निबंध की शैली के बारे में लिखा गया है कि इस निबंध की शैली पर वैचारिक निबंध और भावात्मक निबंध का प्रभाव है लेकिन यह ललित निबंध के अधिक नजदीक है।
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2 Comments
सुन्दर रचनात्मक शैली..🌸🌸
ReplyDeleteअति सुंदर
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