समाज भाषा विज्ञान
भाषा विज्ञान का आमतौर पर यह अर्थ लिया जाता है कि वह भाषा की संरचना, प्रकार्य आदि का अध्ययन करने वाला विज्ञान है। भाषा से इतर समाज और समाज के इतर भाषा के अस्तित्व की कल्पना की ही नहीं जा सकती। सर्वप्रथम जे.आर .फर्थ नामक भाषा वैज्ञानिक ने 1957 में पहली बार इन दोनों को जोड़कर 'समाज भाषा विज्ञान' जैसी शब्दावली का प्रयोग किया था।
समाजवादी विज्ञान वह विज्ञान है जो समाज के परिपेक्ष में प्रयोग होने वाली भाषा। भाषाओं के रूप या रूपों का नियमित रूप से अध्ययन एवं विश्लेषण करता है । समाज भाषा विज्ञान की परिभाषा श्रीवास्तव ने (1994) में दी:-
'समाजभाषाविज्ञान' भाषावैज्ञानिक अध्ययन का वह क्षेत्र है जो भाषा और समाज के बीच पाए जाने वाले हर प्रकार के संबंधों का अध्ययन विश्लेषण करता है । वह भाषा की संरचना और प्रयोग और उन सभी पक्षों एवं संदर्भों का अध्ययन करता है जिनका संबंध सामाजिक एवं सांस्कृतिक प्रकार्य के साथ होता है। अतः इसके अध्ययन क्षेत्र के भीतर विभिन्न सामाजिक वर्गों की भाषिक अस्मिता, भाषा के प्रति सामाजिक शैलियां, बहुभाषिकता का सामाजिक आधार , भाषा नियोजन आदि भाषा अध्ययन के सभी संदर्भ आ जाते हैं , जिनका संबंध सामाजिक संस्थान से रहता है।
समाज विज्ञान यह मानकर चलता है कि मात्र भाषा के 'व्याकरण' का ज्ञान काफी नहीं है, परंतु उस भाषा के प्रयोग के नियम जो कि एक विशेष सामाजिक संदर्भ में अपनाए जाते हैं:- का जानना ही सही मायनों में भाषा की व्याकरण को जानना है। इस विज्ञान की धारणा है कि कोई भी उच्चारित वाक्य बिना किसी सामाजिक संदर्भ के नहीं होता। अतः समाजभाषाविज्ञान किसी भी समाज में संप्रेषण के लिए प्रयोग में आने वाली भाषा, भाषाओं का नियमित रूप से अध्ययन करता है।
1) भाषा वैविधय
वैविध्य यानी विविधता। समाज में विविध रूपों में हमारे सामने आती है। शायद ही संसार की कोई भाषा हो जो सिर्फ एक निश्चित रूप में प्रकट होती है। भाषा वैविध्य का अध्ययन समाजभाषाविज्ञान का प्रमुख उद्देश्य है। भाषा विज्ञान और समाजभाषाविज्ञान में इस संदर्भ में मूलभूत अंतर है। समाजभाषाविज्ञान 'भाषा' को व्यापक पटेल में, उसकी समस्त मूल्यों और शैलियों के समग्र रूप में देखने का यत्न करता है। भाषा में वैविध्य के प्रमुख दो आधार हैं - क्षेत्रीय बोलियां और आयु पेशा, लिंग आदि विभिन्न वर्गों के भाषा व्यवहार के कारण उत्पन्न सामाजिक बोलियां। समाजभाषाविज्ञान व्यक्ति के भाषा रूप को उसकी व्यक्तिगत बोली (idiolect) की संज्ञा देता है। यह उस व्यक्ति का अपना कोड है। समाज के सभी व्यक्तियों की व्यक्तिगत बोलियों का सामग्र ही भाषा है । इसे व्यक्तिगत कोडो के समग्र के अर्थ में कोड आधात्री (code matrix) कहा जाता है।
2) भाषा और बोली
भाषा और बोली का प्रश्न उतना ही विवादास्पद है जितना पति- पत्नी के अधिकारों का द्वंद । 'भाषा' को 'सम्मानजनक' और 'बोली' को 'निम्न' मानने की प्रथा चिरकाल से चली आ रही है। भाषा वैज्ञानिक दृष्टि से कोई भी भाषा या उसका रूप निर्णय उच्च नहीं हो सकता ऐसा हो सकता है। जो कल तक 'बोली' थी आज वह 'भाषा' हो गई हूं और जो 'भाषा' थी वह 'बोली' हो सकती है. समाजभाषावैज्ञानिक यह मानकर चलते हैं कि यदि भाषा और बोली में अंतर किया जा सकता है, तो यह अंतर मुख्य रूप से व्यापकता, प्रयोजन और प्रतिष्ठा के संदर्भ में देखा जा सकता है।
भाषा की यह विविधता दो विशेष आयामों पर परिलक्षित होती है। पहला तो तब जब उसके प्रयोग करने वाले दो भिन्न क्षेत्रों से हो. जैसे एक क्षेत्र में 'रोटी' का अर्थ मात्र रोटी से होता है और दूसरे क्षेत्र में (पंजाब) में 'रोटी' का अर्थ सर्वव्यापक भोजन से हो सकता है।
3) भाषा के सामाजिक स्तर भेद
दूसरा आयाम जो भाषा - बोली के भेद को उजागर करता है वह है सामाजिक । जब भाषा वैविध्य का कारण वक्ता का सामाजिक स्तर भेद (उच्च , मध्यम एवं निम्न वर्ग), जाति- भेद, लिंग भेद (स्त्री - पुरुष), शिक्षा (शिक्षित- अशिक्षित), या फिर उम्र भेद हो, तब भाषा की विभिन्न शैलियों को सामाजिक गोलियों के रूप में समझा एवं देखा जाता है।
क्षेत्रीय कारणों से उपजी भाषाओं में कभी-कभी बोधगम्यता बहुत कम पाई जाती है, पर फिर भी उन्हें एक ही भाषा की माला में पिरोया जाता है. जैसे 'हिंदी क्षेत्र'. भारत सरकार द्वारा माननीय क्षेत्र के एक कोने में राजस्थानी, हाड़ोती जैसी भाषाएं हैं और दूसरे को आने में मगही - मैथिली। यह सभी भाषा की बोलियां हिंदी का 'विविध रूप' कहलाई जाती हैं. पर इनको एक 'भाषा' में बांधना राजनीतिक. सरकारी कदम है - भाषावैज्ञानिक या समाजभाषावैज्ञानिक नहीं. उनके लिए यह भाषा के भिन्न रूप है. सामाजिक कारण से उपजे भाषा - वैविध्य में भौगोलिक कारणों से उपजे भाषा - वैविध्य से कहीं अधिक बोधगम्यता पाई जाती है. लेबाब का यह कथन है कि समाजभाषाविज्ञान ऐसी कोई अलग विधा नहीं मानी जा सकती क्योंकि, समाज भाषाविज्ञान ही तो वास्तविक भाषा विज्ञान है।
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