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लक्षणा शब्दशक्ति

  लक्षणा शब्दशक्ति




मुख्यार्थ की  बाधा होने पर ,रूढी़ अथवा प्रयोजन के कारण , जिस शक्ति के द्वारा मुख्यालय से संबद्ध अन्य अर्थ लक्षित हो उसे लक्षणा शब्द शक्ति कहते हैं।

मुख्यार्थबोधे तद्युक्तो ययाअ्न्यार्थ  प्रतीयते।

रूढे़  प्रयोजनाद् वासो लक्ष्णाशक्तिरर्पिता।।

 लक्ष्क शब्द

जो शब्द लक्ष्णा शक्ति द्वारा रक्षार्थ का द्योतक करता है उसे लक्षण अथवा 'लाक्षणिक' शब्द कहते हैं।

  लक्ष्यार्थ

लक्ष्मण शक्ति द्वारा ग्रहण अर्थ 'लक्ष्यार्थ' कहलाता है।

 लक्षणा शक्ति के भेदोंपभेद

लक्ष्मण शक्ति के दो प्रमुख भेद हैैं- प्रयोजनवती और रूढ़ा।

 प्रयोजनवती लक्ष्णा:-

 जहां मुख्य आर्थिक इसी प्रयोजन के कारण लक्षण का बोध कराए वहां प्रयोजन बत्ती लक्षणा मानी जाती है। इसका प्रसिद्ध उदाहरण है - 'गंगा में आश्रम है।' यहां 'गंगा' शब्द का बाजार है गंगा नदी, लक्ष्यार्थ है गंगा -तट। वक्ता का प्रयोजन है - आश्रम की शीतलता और पवित्रता द्योतित करना।

 प्रयोजनवादी लक्ष्णा के भेद

इसके दो प्रमुख भेद हैं -  गाणी और श्द्धा। इन दोनों के दो दो  उपभेद है - उपादान लक्षणा और लक्षण लक्षणा। इस प्रकार के चार भेद हुए । इन चारों के दो-दो उपभेद हैं - सारोपा और साध्यवासना। इस प्रकार यह 8  भेद हुए-  चार गौणी के और चार श्द्धा के।

गौणी  कहते हैं सादृश्य -संबंध को और श्द्धा कहते हैं सादृश्य से इतर संबंध को । जैसे:-  आधार- आधेय संबंध, आश्रय - आश्रित संबंध,  कारण -  कार्य संबंध। जहां शब्द के मुख्यार्थ का त्याग नहीं होता, और साथ ही अन्य अर्थ का भी आप आसेप होता है, वहां उपादान लक्ष्णा होती है । जहां वाच्यार्थ अन्य अर्थ की सिद्धि के लिए अपने आपको अर्पित कर देता है, वहां लक्षण लक्षण मानी जाती है।

 सरोपा में उपमेय और उपमान दोनों को ग्रहण रहता रहता है, और साध्यवसाना में केवल उपमान (विषयों अथवा अप्रस्तुत) का।

शुद्धा उपादान लक्ष्णा सारोपा

भाले आए जब वहां ,चले बाण घनघोर।

यहां 'भाले' शब्द का वाच्यार्थ है, अस्त्र विशेष और लक्षणार्थ है भालाधारी पुरुष।  इन दोनों अर्थों में सादृश्य - संबंध नहीं है, धार्य - धारण संबंध है,  अतः श्द्धा है। 'ये' विषयी  और 'भाले' विषय दोनों का कथन होने के कारण सारोपा है।

शुद्धा उपादान लक्ष्णा साध्यवासना

विद्युत की इस चकाचौंध में देख दीप की लौ रोती है।अरी!  हृदय को थाम महल के लिए झोपड़ी बलि होती है।                                                      

                                                            --        दिनकर

महल और झोपड़ी शब्दों का अतिरिक्त अर्थ भी अभीष्ट है , अतः उपादान लक्ष्णा है । केवल 'विषयों' शब्दों का प्रयोग किया गया है,  इनके विषय 'निवासी' शब्दों का प्रयोग नहीं किया गया है, अतः साध्वायसना है।

शुध्दा लक्षण लक्षण  सारोपा

आज भुजगों से बैठे हैं, वे कंचन के घड़े दबाए।

                                        ------       हरि कृष्ण प्रेमी

भुजंग शब्द का  वाच्यार्थ है  सर्प और 'लक्ष्यार्थ' है  धनी व्यक्ति । 'भुजंग'  शब्द का अर्थ नितांत अभीष्ट नहीं है। अतः लक्षण लक्षणा है।

शुद्धा लक्षण लक्षणा साध्यवसाना

 अबला जीवन हाय! तुम्हारी यही कहानी।
 आंचल में है दूध और आंखों में पानी।।

यहां आंचल का 'लक्ष्यार्थ' है पयोधर है। आंचल और पयोधर में सामीप्य- संबंध होने के कारण श्द्धा है। आंचल का अर्थ नितांत छूट जाने के कारण लक्षण लक्षण है। केवल आंचल रूप एक पक्ष का ग्रहण होने के कारण साध्यवासना  है।

  

जहाँ  मुख्यार्थ रूढी के कारण के कारण लक्षणार्थ का बोध कराता है,  वहां रूढा़ लक्षणा मानी जाती है। इसके अंतर्गत मुहावरे और लोकोक्तियां आती हैं। जो शब्द अपना वाच्यार्थ छोड़कर आज केवल एक विशिष्ट अर्थ में प्रयुक्त होते हैं,  वे भी रूढ़ा लक्षणा के अंतर्गत आते हैं। जैसे कुशल का वाच्यार्थ है कुश को सावधानी से लाने वाला, प्रवीण का अर्थ है वीणा बजाने वाले में निपुण,लक्षणार्थर्थज इनका लक्षणार्थ है-  किसी भी कार्य में निपुण।

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