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प्राचीन भारतीय इतिहास के साहित्यिक स्रोत

 प्राचीन भारतीय इतिहास के साहित्यिक स्रोत




कई इतिहासकारों द्वारा प्रमाणित करने का प्रयास किया गया कि भारतीय साहित्य के इतिहास के स्रोत उपलब्ध नहीं है. लेकिन वास्तविकता से बिल्कुल विपरीत है प्राचीन भारतीय इतिहास की जानकारी देने वाले सूत्र बहुत भारी मात्रा में उपलब्ध है  . इनको निम्नलिखित हम चार भागों में बांट सकते हैं :-

1)साहित्यिक स्रोत

2) पुरातात्विक स्रोत 

3)विदेशी यात्रियों के वृतांत 

4)लोक काव्य

साहित्य स्रोत

आधुनिक इतिहासकारों से पुरातात्विक और प्राचीन इतिहासकारों की संकल्पना पूर्ण तरह  अलग है .सर्वप्रथम हम साहित्यिक स्रोतों के विषय में बात करेंगे. इस साहित्य को हम तीन भागों में बांट सकते हैं पहला है धार्मिक साहित्य ऐतिहासिक साहित्य और ऐतिहासिक साहित्य

 धार्मिक साहित्य

ऐसा साहित्य जिसमें हमें जानकारी धर्म की किताबों द्वारा मिलती है ऐसे साहित्य को ऐसी प्राचीन जानकारी को हम धार्मिक साहित्य के रूप में जानते हैं धार्मिक साहित्य को भी तीन भागों में बांटा गया  1) हिंदू तथा ब्राह्मण साहित्य  2)बौद्ध साहित्य और  3)जैन साहित्य

हिंदू तथा ब्राह्मण साहित्य

 हिंदू साहित्य द्वारा हमें एक बहुत बड़ी जानकारी प्राप्त होती है मुख्यता यह साहित्य उस समय के ऋषि-मुनियों और ब्राह्मणों द्वारा लिखा गया.  जो कि एक समाज अवस्था की विषय में महत्वपूर्ण जानकारी बताता है.  इनमें चार वेदों की महिमा महत्वपूर्ण है जिनका नाम ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद  है.  इनके द्वारा हमें आर्यों की प्रारंभिक धार्मिक, सामाजिक एवं आर्थिक दशा का ज्ञान कुछ अधिक और राजनीतिक जीवन का ज्ञान कुछ कम होता है

ऋग्वेद में कई प्रकार की उपासना ही लिखी गई है. वहीं यजुर्वेद में यज्ञ और बलि का वर्णन किया गया है . सामवेद में मंत्रोच्चारण और गीत-संगीत के विषय में बताया गया है. वहीं अथर्ववेद में हमें समाज का ज्ञान मिलता है जिसमें टोना- टोटका और अर्थ की कुछ बातें सम्मिलित है जो उस समय समाज में व्याप्त थी.

 इसके इसके अलावा हमें अन्य जानकारी उपनिषद से भी प्राप्त होती है. उपनिषद भी इसी काल की रचनाएं हैं इनसे आर्यों के आध्यात्मिक चिंतन सृष्टि की रचना और जीवन मृत्यु चक्र के बारे में जानकारी मिलती है. उपनिषदों का मुख्य कार्य यह था कि किस प्रकार आत्मा से परमात्मा का मिलन के विषय मे जानकारी देना था .

इसके अलावा हमें धार्मिक साहित्य की जानकारी वेदांग ओ वेदो और व्याकरण बंधु तथा अन्य उपनिषदों से प्राप्त होती है सबसे प्राचीन उसमें मनुस्मृति है. रामायण,  महाभारत आदि ग्रंथ भी अधिक प्रचलित है.  इन ग्रंथों से उत्तर वैदिक काल के आर्यों की सभ्यता की जानकारी मिलती है रामायण काल में कृषि पर आधारित लोग वनों को साफ करके कृषि योग्य बना रहे थे. वही महाभारत की कथा धर्मशास्त्र युद्ध के विषय में जानकारी देती है .

 धार्मिक साहित्य के विषय में पुराण बहुत अधिक जानकारी उपलब्ध कराते हैं इनकी संख्या मुख्य का 18 दिन में वायु, विष्णु, भागवत और मत्स्य संभवत प्राचीन पुराण है. इनमें प्राचीन राजवंश का वर्णन है परंतु इनमें राजवंशों का जो वर्णन मिलता है वह बिल्कुल भिन्न है. कहीं पर यह वर्णन भविष्यवाणी करता है जिसे समझना कठिन है .जो इतिहास को अवास्तविक सिद्ध कर देती है .डॉक्टर  रोमिला थापर ने इस बारे में जानकारी एकत्रित की . उनके हिसाब से पुराण तीसरी और चौथी शताब्दी में लिखे गए थे.

बौद्ध साहित्य 

बौद्ध साहित्य में त्रिपिटक सबसे प्राचीन ग्रंथ है. इसके अलावा सूर्य पिटक,  विनय पिटक, अभिधम पिटक और अन्य ग्रंथ है. सूतपिटक में बुद्ध के धार्मिक विचारों का संग्रह है. वही विनय पिटक में बौद्ध संघों के नियमों का वर्णन है. अभी तो मृतक में बौद्ध दर्शन की विवेचना है इस प्रकार जातक कथाएं भी बौद्ध साहित्य में अधिक प्रचलित है. जोकि बौद्ध बुद्ध के पूर्व जन्मों की काल्पनिक कथाएं हैं विंड के अनुसार जातक केवल कला तथा साहित्य की दृष्टि से ही नहीं अपितु ईशा की तीसरी शताब्दी की सभ्यता के इतिहास की दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है.

प्लेन पद में यूनानी भारतीय राज्य में नांदेड और बौद्ध भिक्षु नाक सिंह की दार्शनिक वार्तालाप है. इस पुस्तक में उत्तर पश्चिमी भारत के जीवन की भी झलक मिलती है. दिव्या वरदान में अनेक राजाओं की कथाएं हैं आर्य मंजुश्री मूल कल्पना सम्राट का वर्णन है . जो बहु दृष्टि से लिखा गया है . गुंटूर निकाय में छठी शताब्दी ईसा पूर्व के 16 जनपदों का वर्णन मिलता है. अशोक द्वारा रचित बुद्ध चरित्र सन आनंद  और सूची अन्य बौद्ध ग्रंथ है.

 जैन साहित्य

अनिल साहित्य की तरह जैन साहित्य भी पुरातात्विक स्रोतों का कार्य करता है . इसमें महत्वपूर्ण 12 अंग है.  आचार अंगसूत्र में चयन रक्षकों के आचार्य नियमों का उल्लेख है. भगवती सूत्र पर मे भगवान महावीर के जीवन पर प्रकाश डाला गया है. भगवती सूत्र में भी 16 जनपदों का उल्लेख है. भद्रबाहु चरित्र में चंद्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में कई घटनाओं का ज्ञान मिलता है. वसुदेव हिंदी महत्वपूर्ण जैन ग्रंथ है परंतु सबसे महत्वपूर्ण  पृष्ठ परिशिष्ट पर्व है. इसकी रचना बारिश ताप्ती में हुई.  जैन साहित्य समकालीन सामाजिक एवं धार्मिक दशा का वर्णन करता है.

 ऐतिहासिक साहित्य

उस समय के राजाओं के शासनकाल में साहित्य की रचना गद्य और पद्य दोनों ही रूपों में हुई. जिसमें की दरबारी और लेखक कवि होते थे. लेखक यद्यपि पूर्वाग्रह ग्रसित होते थे तथापि लिखित सहित अन्य साहित्य की तुलना में अधिक सत्य माना जाता है. इन योजनाओं में कौटिल्य का अर्थशास्त्र प्रमुख है इसमें हमें मौर्य शासन प्रणाली की विस्तृत जानकारी मिलती है. बाणभट्ट का हर्ष चरित्र जिसकी तुलना अकबरनामा से की जाती है.  इसी प्रकार कम नंद की नीति शास्त्र से गुप्त काल के रास्ते की जानकारी मिलती है . सोमदेव सूरी का नीति वाक्य मृत भी अर्थशास्त्र के मुकाबले का ग्रंथ है. लकड़ी रास्ते में कश्मीर के 12 वीं शताब्दी के इतिहास का ज्ञान करवाती है.  काल के शासकों के गुण दोषों का निष्पक्ष वर्णन इस पुस्तक में किया गया है . पृथ्वीराज चौहान के शासनकाल में उनके द्वारा रचित पृथ्वीराज रासो में तत्कालीन शासन व्यवस्था सामाजिक, आर्थिक परिवेश के साथ-साथ राजपूतों की उत्पत्ति का संबंध में भी एक अलग तर्क प्रस्तुत करती है. उसी प्रकार सोमेश्वर की और कीर्ति कॉमेडी प्रबंध चिंतामणि राजेश्वर के प्रबंध कोष से हमें गुजरात की जानकारी मिलती है. इस प्रकार अनेक ऐतिहासिक साहित्यिक स्रोत उपलब्ध है जो हमें एक अच्छा ऐतिहासिक वर्णन देते हैं, क्योंकि जितने राजा आए उन्होंने कुछ ना कुछ पुस्तके उनके समय काल में के दौरान लिखी गई.

  अर्थ ऐतिहासिक साहित्य

काबिल एक नाटक उपन्यास या अन्य किसी भी रूप में किसी भी काल में लिखा गया सहित अर्थ ऐतिहासिक साहित्य कहलाता है. गुप्तकालीन महान कवि कालिदास की रचनाएं ऋतुसंहार, मेघदूत कुमारसंभव ,रघुवंश, मालवा बिकनी, मित्र ,अभिज्ञान शकुंतलम हमें तत्कालीन जानकारी प्रदान करता है. प्राचीन भारतीय इतिहास की जानकारी प्राप्त करने के लिए इस प्रकार के साहित्य पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है . जो समाज में व्याप्त सामाजिक आर्थिक राजनीतिक दशा का वर्णन देता है.

पुरातात्विक स्रोत

भारत का प्राचीन इतिहास जानने के लिए पुरातात्विक स्रोत का बहुत महत्व है । भारतीय ग्रंथों का रचनाकाल ठीक प्रकार से नहीं मिल पाता . लेकिन फिर भी पुरातात्विक स्रोत एक हद तक एक विश्वसनीय जानकारी उपलब्ध करवा देते हैं . इनमें कई चीजें शामिल है हम उनका वर्णन एक-एक करके करेंगे.

 अभिलेख

यह सबसे महत्वपूर्ण स्रोत है. प्राचीन अभिलेख पत्थर या धातु पर लिखे गए . सभी अभिलेखों पर उनकी तिथि नहीं है फिर भी अक्षरों के बनावट से उनके काल समय का पता लगाया जा सकता है. सबसे प्राचीन अभिलेख अशोक के हैं. इनमें उसका नाम अंकित है .अशोक को देवताओं का प्रिय प्रियदर्शी भी कहा गया. अशोक के धर्म और राष्ट्र तत्व के सिद्धांत का ज्ञान हमें इन अभिलेखों द्वारा होता है. कुछ अभिलेख  ब्राह्मी लिपि में लिखे गए हैं कुछ अभिलेख खरोष्ठी लिपि में भी उपलब्ध है.

बाद में अभिलेखों को सरकारी और निजी अभिलेखों में बांटा गया. सरकारी अभिलेख तो राज कवियों की लिखी गई प्रशस्ते है  या भूमि अनुदान पत्र है.  इलाहाबाद प्रयाग प्रशस्ति सम्राट  समुद्रगुप्त की विजय चरित्रवान नीतियों का वर्णन करता है. राजा भोज की ग्वालियर प्रशस्ति उसकी सफलताओं का उल्लेख करती हैं. उसी प्रकार कलिंग के राजा का हाथी गुफा अभिलेख रुद्रदामन का जूनागढ़ का शिलालेख और चालू की नरेश पुलकेशिन द्वितीय का उल्लेख स्कंद गुप्त का भीतरी स्तंभ लेख इसमें सम्मिलित है.

वहीं निजी अभिलेखों में मंदिरों की मूर्तियां और पाषाण अंकित है. इन पर भी तिथियां लिखी हुई है. इनकी वास्तुकला देखने लायक है भाषाओं के विकास एवं धर्म का भी पता लगता है और राजनीतिक दशा का विज्ञान इनसे हमें मिल पाता है. अधिकारियों के पद और समकालीन करो का उल्लेख भी होता है. सातवाहन राजाओं को तो पूरा इतिहास उनके अभिलेखों के आधार पर ही लिखा गया.  इसी प्रकार दक्षिणी भारत के शासकों का इतिहास अभिलेखों द्वारा निर्मित है. एशियाई माना गुजरी नामक स्थान पर एक संधि पत्र अभिलेख मिला है. यह  एक विदेशी अभिलेख है इसमें वैदिक देवताओं का नाम लिखा गया है. इसमें सम्मिलित है वरुण , इन्द्र इत्यादि. वेरी सॉरी कहते हैं कि ईरानी सम्राट द्वारा प्रथम ने सिंधु नदी पर अधिकार किया था.

 भूमि दान पत्र

भूमि दान पात्रों में भूमि खंडों का वर्णन है और शासकों की सफलताओं का भी वर्णन है. जिनका वर्णन राज कपूर द्वारा बढ़ा चढ़ाकर किया गया . भूमि अंग दान पत्र अभी अधिकतर तांबे के छात्रों पर अंकित है या अनुदान पत्र प्राकृतिक संस्कृत तेलुगु और तमिल भाषा में लिखे गए तथा चोल पांडे व राष्ट्रपुत्र क्षेत्र का ज्ञान करवाते हैं. अशोक के अभिलेख से उसके राजस्थान का ज्ञान प्राप्त होता है.

 सिक्के

सिक्के एक महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्रोत है यह विभिन्न राजाओं द्वारा उपलब्ध करवाए जाते थे. जो उनके नीति और बल का प्रमाण होते हैं सिक्के हमें विभिन्न क्षेत्रों के क्षेत्रों से विभिन्न धातुओं के रूप में मिले हैं. इन पर शासकों की प्रशासनिक योग्यता वंश क्रम तिथि दरबार इत्यादि का वर्णन मिलता है.  यह तत्कालीन समाज की सामाजिक आर्थिक और धार्मिक स्थिति का भी ज्ञान देते हैं.  यदि विदेशों के सिक्के भारत में तथा भारत के सिक्के विदेशों में प्राप्त होते हैं तो स्पष्ट है कि हमारा व्यापार उन दोनों देशों में हो रहा था 206 ई पू  से 300ई पू तक का भारतीय मूल्य शिक्षा पर आधारित है. हिंदी सेनानी 30 सिक्के हमें मिले हैं जो इस बारे में विस्तृत जानकारी देते हैं. मौर्योत्तर काल के सिक्के शीशा टीम बाबा का सोने  चांदी के हैं. कुषाण के सिक्के शुद्ध सोने से  बनाए गए थे.  बौद्ध कालीन सिखों पर मछली पेड़ अर्धचंद्र हाथ इत्यादि के चित्र गुप्त काल में सिक्कों पर विष्णु और गरुड़ के चित्र मेले हैं.  समुद्रगुप्त के सिक्कों पर अशोक पराक्रम शब्द अंकित है जिससे वीणा बजाते हुए दिखाया गया है.  इस के संगीत प्रेमी होने की जानकारी मिलती है.  सातवाहन से ऊपर जलपोत का होना उनकी नौसेना व समुद्री विषय को स्पष्ट करता है . इस प्रकार के प्राचीन भारतीय इतिहास की जानकारी का बहुमूल्य  स्त्रोत  है।


 स्मारक एवं भवन

पुरातात्विक स्रोतों का स्मारक एवं भवन एक महत्वपूर्ण स्रोत है. प्राचीन भवन और मंदिरों की शैली विषय वास्तुकला का ज्ञान होता है. यह कला शैली नागर शैली कहलाती थी.  दक्षिण भारत के मंदिरों की कला ग्रामीण शैली के लाती है. दोनों सहेलियों के मिश्रण को वैसे शैली कहा जाता है मंदिरों स्तूपम व्यवहार बहारों से धार्मिक विश्वासों की ज्ञान मिलती है.  विदेशों से मिले मंदिरों के अवशेष भारतीय संस्कृति के विकास पर प्रकाश डालते हैं. जावा में बारूद दुर्गा स्मारक वहां महायान बौद्ध धर्म की लोकप्रियता का प्रमाण है. इस प्रकार कला के माध्यम से हम भारतीय और विदेशी संस्कृति से संबंध में जानकारी प्राप्त करते हैं ।

 चित्रकला

अजंता की चित्रकला द्वितीय है 19 गुफाओं में चित्रकला द्वारा सारे जीवन का नाटक चित्र है इन चित्रों में मरती हुई राजकुमारी शिकार का दृश्य माता और पुत्र राजा और हंस आदि के चित्र अधिक प्रसिद्ध है यह चित्र गुप्त काल की कलात्मक उन्नति का वर्णन करते हैं इनमें तत्कालीन जीवन की झलक मिलती है इनमे जीवन एवं कला का गहरा संबंध दर्शाया गया है

  अवशेष

खुदाई में जो अवशेष मिले हैं उनसे प्राचीन आज इतिहास की जानकारी का जानकारी मिलती है पत्थर बन हड्डियों के औजारों की से आदि मानव के जीवन का ज्ञान होता है उस समय के मकान मिट्टी बर्तन खंडेराव से लोगों की जीवन का ज्ञान होता है इसी प्रकार हमें पता चलता है कि पुरापाषाण युग से मध्य पाषाण युग के बीच में क्या-क्या परिवर्तन हुए यह भी अवशेषों से पता चलता है लोगों ने किस प्रकार कृषि करना सिखा भूमि अधिकार करना सिखा पशुपालन शुरू किया और किस प्रकार उन्होंने सभ्यता का विकास किया इसका एक महत्वपूर्ण धारण मोहनजोदड़ो मोहनजोदड़ो से 500 से अधिक मुहावरे मिली है इनसे समकालीन धार्मिक विश्वासों का ज्ञान प्राप्त होता है वैशाली से 274 मिट्टी के बारे में ली है जिन से कैसे निकलता है जिसमें साहूकार व्यापारी और माल ढोने वाले सभी शामिल थे गुप्त काल में का बहुत महत्व है इसलिए संस्कृति के विकास पर प्रकाश डालते हैं आधार पर ही भारत में लोहे का प्रयोग लग जाता है लोहे के अधिक शक्तिशाली हो गया था इसका एक स्पष्ट उदाहरण मगध था

 विदेशी यात्रियों का वृत्तांत

प्राचीन समय में भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था इसी कारण यहां भारतीय भारत में विदेशी लोगों का ताता लगा रहा । जिस कारण भारतीय भारतीय विदेशों में तथा विदेशी भारत में आते जाते रहे विदेशों में भारत आने जाने वाले व्यक्तियों ने डायरी संस्मरण या फिर कोई रिकॉर्ड बनाया और दस्तावेज तैयार किए यही दस्तावेज आज भारतीय इतिहास के स्रोत के रूप में प्रयोग किए जाते हैं ।

 यूनान और रोम के लेखक

यूनान और रोम के लेखक भारत आए इनमें सबसे प्राचीन यूनान के लेखक हेरोडोटस और रोम के लेखक पीसीएस के वृतांत हैं इन्होंने  भारत के बारे में ज्ञान इरान से प्राप्त किया लेकिन इनकी वृत्तांत में छुट्टियां मिलती हैं जो लेखक सिकंदर के साथ भारत आए उनका वृतांत अधिक विश्वसनीय है जिसमें निराकरण अरिस्टो प्लस आदि है मेगस्थनीज की पुस्तक इंडिका अब उपलब्ध नहीं है यूनान और रोम के लेखकों ने इंडिका के आधार पर अपने लेख लिखें सिकंदर के आक्रमण की तिथि पर ही मौर्य शासकों की तिथियां निश्चित की गई इन लेखकों ने राजनीतिक घटना का क्रम सामाजिक दशा और शासन प्रबंध पर प्रकाश डाला था यूनानी विमानों की पुस्तकों में पीपल ऑफ दी आरपीएससी बहुत महत्वपूर्ण है इसके लेखक का नाम ज्ञात नहीं है परंतु इतना अवश्य पता था कि वह यूनान का रहने वाला था उसने भारतीय बंदरगाहों पर आयात निर्यात की गई वस्तुओं के नाम लिखे टॉलमी ने दूसरी शताब्दी में भारत का भौगोलिक वर्णन किया ने पहली शताब्दी में अपना वर्णन किया भारतीय पशु पौधों और खनिज पदार्थों का वर्णन पिल्ले ने बहुत ही आकर्षक ढंग से किया था

  चीन के लेखक

बौद्ध धर्म के विषय में जानकारी एकत्रित करने के लिए अनेक चीनी लेखक भारत आते रहे इन यात्रियों में पाया निशांत सिंह प्रसिद्ध है इन्होंने अपनी अपना वर्णन चीनी भाषा में लिखा । 

फाह्यान पांचवीं शताब्दी में भारत आया उस समय चंद्रगुप्त द्वितीय का शासन काल था उसने बौद्ध धर्म में अपनी पुस्तक हुई यूपी में लिखा और चंद्रगुप्त के शासन का वर्णन भी किया वह लगभग 14 वर्षों  तक भारत में रहा

हाूनसांग

सुनसान फर्श के शासनकाल में भारत आया उसके द्वारा रचित पुस्तक से युग की है वह लगभग 16 वर्षों तक भारत में रहा उसने अपनी पुस्तक में भारत की सामाजिक व धार्मिक राजनीतिक व्यवस्था का वर्णन किया शादी रीति-रिवाजों बहुत शिक्षा पद्धति के बारे में वर्णन किया

इति्संग

भाऊ साठे शताब्दी के अंत में भारत में आया वह बहुत समय तक नालंदा विश्वविद्यालय में रहा उसने बौद्ध शिक्षा संस्थाओं भारतीय श्री श्याम तथा खान-पान के विषय में अनेक जानकारियां एकत्रित करें

  अरब के लेखक

अरब के लेखक सलमान नवी शताब्दी में भारत आया उसने पाल और प्रतिहार राजाओं के बारे में लिखा आलम सूट 2 वर्षों तक भारत में रहा उसने राष्ट्रकूट राजाओं की विषय में लिखा अरब लेखकों में अभी रिहान सबसे प्रसिद्ध लेखक था इतिहास में अलबरूनी के नाम से पुकारा जाता है वह महमूद गजनवी के साथ भारत आया था उसने संस्कृत भाषा सीख कर भारतीय संस्कृति को जानने का प्रयत्न किया है कि केवल हिंदू एक प्रसिद्ध ग्रंथ है उसने भारतीय साहित्य और भारतीय जीवन का वर्णन किया उसने भारतीय गणित ज्योतिष भूगोल दर्शन रीति-रिवाज और सामाजिक विचारधारा का विस्तारपूर्वक वर्णन किया

 तिब्बत के लेखक

तिब्बत की आती तारक नाथ ने भी भारत का भ्रमण किया उसने बौद्ध धर्म का इतिहास नामक पुस्तक लिखी है परंतु उसका वर्णन धार्मिक दृष्टिकोण से भरा हुआ था उसमें सामाजिक एवं राजनैतिक वर्णन का अभाव था इसी प्रकार वेनिस इटली के यात्री मार्गो के लोग का नाम भी आता है तेरी सदी के अंत में दक्षिण भारत आया उसने अपने लेखन भारतीय व्यापार तथा यहां के आर्थिक स्थिति का वर्णन किया

 प्राचीन भारत का इतिहास जानने के लिए परिश्रम एवं खोज की आवश्यकता होती है आधुनिक विज्ञान के युग में प्राचीन भारत के इतिहास के स्रोत कम है आधुनिक इतिहास को इतिहासकार को निष्पक्ष होकर इतिहास लिखना चाहिए और प्राचीन लिखो के वर्णन का सही अर्थ समझने के लिए लेखक के उद्देश्य एवं उसकी विचारधाराओं को ध्यान में रखना चाहिए रामाशंकर त्रिपाठी कहते हैं इतिहास को एक खान खोदने वाले की भांति स्वर्ण पदक प्राप्त करने के लिए तर्क रूपी विचार और धैर्य रूपी कुल्हाड़ी से कार्य करना चाहिएचाहिए।

 लोकधारा

 विश्व में अनेक ऐसे स्थान है जहां पर ना तो पुरातत्व सामग्री प्राप्त होती है और ना ही कोई साहित्यिक सामग्री तो क्या यह मान लेना चाहिए कि उन स्थानों का कोई इतिहास नहीं होगा नहीं ऐसा माना बिल्कुल अवस्था वास्तविकता है ऐसी स्थिति में हम लोग काव्य या फिर लोकधारा या लुक द्वारा प्रचलित उन बातों पर विश्वास कर कर जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। उदाहरण के लिए तुलसी पौधा है जो अनेक बीमारियों का उपचार करता है उसे सुरक्षित रखा है रखने के लिए हमारे पूर्वजों ने यह प्रावधान बनाया कि तुलसी तुलसी एक पूजनीय पौधा है और उसकी पूजा करनी चाहिए ऐसा करके रखना उस पौधे को इस प्रजाति को संरक्षण प्रदान किया ताकि भविष्य में हमारे काम आती रहे इस प्रकार यह लोग धारा हमें अनेक पुरातात्विक जानकारियों से समकक्ष करवाती है।

यह स्त्रोत इतिहास के निर्माण में काफी महत्व रखते हैं आवश्यकता है उनके से निरीक्षण की अनेक भारतीय तथा विदेशी विद्वानों ने इनके निरीक्षण का कार्य आरंभ किया है डॉक्टर समझदार संदर्भ में कहते कि इसमें कोई संदेह नहीं कि अभी उसमें भारतीय इतिहास की रूपरेखा में रंग भरना है किंतु अब तक जो सफलता मिली है वह भविष्य के लिए  प्रोत्साहन देती है।

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