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नवजागरण और आधुनिक बोध / भारतेंदु युगीय सहित्यिक अभिव्यक्ति / भारतेंदु युग

नवजागरण और आधुनिक बोध  / भारतेंदु युगीय  सहित्यिक अभिव्यक्ति  (भारतेंदु युग)


   


हिंदी साहित्य के आधुनिक काल का भारतेंदु युग का पहला चरण है । इनका नाम भारतेंदु हरिश्चंद्र के नाम पर पड़ा क्योंकि इस युग में  उनके व्यक्तित्व व कार्यों की छाप स्पष्ट दिखाई देती है। भारतेंदु हरिश्चंद्र का जन्म 1850 और मृत्यु 1885 में हुई थी । इस कालखंड को भारतेंदु युग के नाम से संबोधित किया गया  ; लेकिन ऐसा संभव होना मुश्किल सा लगता है क्योंकि भारतेंदु के जन्म लेते ही भारतेंदु युग की शुरुआत हो गई ऐसा मानना बिल्कुल गलत है और यह मान लेना की उनकी मृत्यु के बाद इस युग का अंत हो गया यह भी सर्वथा अनुचित है । डॉ° बच्चन सिंह ने इस संदर्भ में कहा कि 1857 को आधुनिक काल का आरंभ मानना चाहिए क्योंकि पूरे भारतवर्ष में हिंदी साहित्य के साथ , इतिहास ने भी इस समय निर्णायक मोड़ लिया । यह भारत के प्रथम स्वतंत्रता - संग्राम की शुरुआत का  वर्ष है । भारतेंदु युग की अंतिम सीमा 1900 स्वीकार करनी चाहिए क्योंकि इस वर्ष नागरी प्रचारिणी सभा , काशी के अंतर्गत सरस्वती पत्रिका का प्रकाशन आरंभ हुआ


         

 नवजागरण और आधुनिक बोध

यह काल  नवजागरण का था । संपूर्ण भारतवर्ष में अंग्रेजों का शासन स्थापित हो चुका था । संपूर्ण भारतवासी उनके शोषण से त्रस्त थे । नवजागरण होने का प्रमाण यह था कि देश के जिस भाग से उनका प्रभुत्व स्थापित स् हुआ उसी बाग में भारतीयों में नवजागरण और आधुनिकता की चेतना का प्रारंभ हुआ। अंग्रेज लोगों को शिक्षित करना चाहते थे ताकि उन्हें अपना धर्म छोटा लगने लगे और वे इसाई धर्म को अपना ले . लॉर्ड मेकाले  जिसने शिक्षा का प्रारूप पेश किया उसने स्पष्ट कहा  "हम भारत में पश्चिमी संस्कृति का प्रभुत्व तब तक स्थापित नहीं कर पाएंगे जब तक भारतीय शिक्षा पद्धति से संस्कृत भाषा को पूरी तरह से निष्कासित नहीं कर देते"

बंगाल में एक समय ऐसा भी आया जब  बच्चों को पैदा होते ही विदेश भेजा जाने लगा था ताकि वे अपना भाषा ना सीख कर विदेशी भाषा सीखे । अपने धर्म को बचाने के लिए कई बुद्धिजीवी सामने आए और उन्होंने कुप्र्थाऔ और अपने धर्म से उपस्थित अंधविश्वास , रूढ़ियों को निकाल फेंकने का कार्य किया ताकि  अपने देश का धर्म सर्वाग्राहा बन सके.
1828                राजा राममोहन राय                    ब्रह्म समाज की स्थापना
1867                महादेव रानाडे                             प्रार्थना समाज
1867                दयानंद                                       आर्य समाज
इन सब से जागरण तो हुआ लेकिन दो दिशाओं में  - मानसिक स्वाधीनता और अंग्रेजी राज भक्ति ।
 मानसिक स्वाधीनता - मानसिक स्वाधीनता ने भारतीयों को उनकी जड़ता से मुक्त किया और वे इस जीवन और उसकी समस्याओं पर विचार करने योग्य हुए ।
  अंग्रेजी राज भक्ति - एक बहुत बड़ा वर्ग अंग्रेजों के शासन को अपने लिए अच्छा समझने लगा लेकिन बहुत जल्दी उनकी समझ में यह  आ गया कि पराधीनता से स्वतंत्रता का सुख मिलना असंभव है यह शिक्षित  होने का ही परिणाम था ।

भारतेंदु युगीन गद्य साहित्य


आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने लिखा  - आधुनिक काल में गद्य का आविर्भाव सबसे प्रधान  साहित्यिक घटना है  जिसमें 3 साहितियिक विधाएं हैं:-
  1) नाटक                2) निबंध             3) उपन्यास

नाटक 

भारतेंदु युग से पहले नाटक कम ही देखने को मिलते थे । भारतेंदु ने एक अंग्रेजी से , एक बंगला से और पांच संस्कृत से नाटकों के अनुवाद किया और 10 मौलिक नाटक लिखे । जिसमे - मुद्राराक्षस, हरिश्चंद्र, वैदिक हिंसा हिंसा न भवति , श्रीचंद्रावली,  भारत दुर्दशा ,अंधेर नगरी को विशेष ख्याति मिली । भारतेंदु ने कालचक्र में बताया हिंदी में प्रथम नाटक
                               1) नहुष (1859)
                               2) शकुंतला(1863)
                               3) विद्या सुंदर  (1871)

भारतेंदु ने भारतीय एवं पाश्चात्य शैली के तत्व लेकर नई नाटक शैली का निर्माण किया । जिसमें प्रयोगशीलता और प्रगतिशील था दोनों विद्यमान है ।उन्होंने अपने नाटक रंगमंच पर लिखे थे । वे स्वयं रंगमंच में सक्रिय थे । भारतेंदु युग में तीन नाटककार विशेष रूप से उल्लेखनीय है :-
 1) लाल श्रीनिवास                प्रहलाद चरित्र    ,रणधीर प्रेममोहिनी  (दुखांत प्रेमकथा)
2) प्रताप नारायण मिश्र         हमीर हठ   ,    भारत दुर्दशा 
3) राधाचरण गोस्वामी        सुदामा सतीश  ,चंद्रावली 
 भारतेंदु युग में नाटक प्रदर्शन का आंदोलन ही उठ खड़ा हुआ जितने नाटक उस काल में लिखे गए उतने किसी काल में नहीं ।

 निबंध साहित्य

हिन्दी साहित्यमेगद्य  के विकास के साथ-साथ निबंध शैली का भी जन्म हुआ । भारतेंदु युग में सामाजिक धार्मिक आदि विषयों में निबंध लिखे जाने लगे  ।भारतेंदु ने निबंध कम ही लिखे इन निबंधों में हृदय का भवोउल्लाश देखने को मिलता है किंतु यहां निबंध बहुत वैचारिक नहीं थे । निबंधकार रूप में अपना विशिष्ट स्थापित करने वाले चार ही लेखक हैं  भारतेंदु हरिश्चंद्र  ,लालकृष्ण भट्ट , प्रताप नारायण मिश्र , मिश्रजी के निबंधों में  प्रवाह , सजीवता , आत्मीयता , बांका पन  ,चमत्कार और भावों और विचारों का चुलबुलापन , व्यंग विनोद छलकते हैं . पाठक और लेखक के बीच जैसा अनौपचारिक और आत्मीय संबंध भारतेंदु युग में स्थापित हुआ वैसा किसी अन्य युग में नहीं ।

 उपन्यास साहित्य

भारतेंदु युग में आधुनिक हिंदी उपन्यास जन्मा भी और विकसित भी हुआ । लाल श्रीनिवास द्वारा लिखित "परीक्षा गुरु" को हिंदी का पहला उपन्यास स्वीकार किया गया । इस पहले उपन्यास के बाद भारतेंदु युग में बहुत बड़ी संख्या में उपन्यास लिखे जाने लगे । इन उपन्यासों को लक्ष्य की दृष्टि से दो वर्गों में विभाजित किया गया ।
१) जो इतिहास पुराण से अथवा शुद्ध काल्पनिक थे परंतु भावनाओं के साथ साथ शिक्षित भी करते थे
२) जिनका लक्ष्य शुद्ध मनोरंजन था
एक अन्य श्रेणी भी उपन्यासों में दिखी जिसे जासूसी उपन्यास कहा गया जिसमें पहला नाम गोपाल राम गहमरी का है ।

अन्य गद्य विधाएं

भारतेंदु युग में अन्य साहित्यिक विधाओं की कोई खास रचना नहीं हुई  किंतु पंडित बाल भट्ट और बद्रीनारायण चौधरी  "प्रेमधन" ने आलोचना साहित्य को जन्म दे दिया और आगे चलकर उसका विस्तार और विकास भी हुआ।


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