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RITIKAAL KI PRAMUKH PRAVARTIYA , रीतिकाल की प्रमुख प्रवृतियां

 रीतिकाल की प्रमुख प्रवृतियां     


मिश्र बंधुओं ने जिसे उत्तर मध्यकाल कहा , उसे हम रीतिकाल के नाम से जानते हैं । रीतिकाल 1700  से 1900 तक निर्धारित किया गया ।  इस काल में ऐसे कवि थे जो राजा के दरबार में उनका गुणगान करके  अपनी आजीविका कमाते थे । उनकी मूल प्रवृत्ति थी - जिसका खाना उसी का गाना । अतः यह उन राजाओं को हमेशा प्रसन्न रखने के लिए उनका गान करते रहते थे । इस काल के कवियों के आदर्श थे - संस्कृत के आचार्य जिन्होंने अलंकार  , रीति ,  ध्वनि,  गुण आदि पर काव्य शास्त्रीय ग्रंथ लिखे थे।
 रीतिकालीन कवियों को इस प्रकार 3 श्रेणियां में विभाजित किया जाता है ।
 1)रीतिबद्ध
2) रीतिसिद्ध
3) रीतिमुक्त

 काव्य शास्त्रीय आधार

रीतिकालीन कविता के प्रमुख आधारों में काव्यशास्त्रीय आधार कहां से लिया गया यह जानना महत्वपूर्ण है । इन कवियों ने संस्कृत के अलंकार ,     रीति , ध्वनि  , गुण,  गंभीरता , रसिकता को स्वीकार किया।
 रीतिबद्ध कवियों को बना दो भागों में बांटा जाता है
1)सर्वांगीण रूपक कवि
2)विशिष्टांग  निरूपक
सर्वांगीण रूपक  - जिसमें कवियों द्वारा रस , छंद , अलंकार , गुण , रिसिकता का विवेचन किया गया है ।

विशिष्टांग निरूपण - जब रीतिकालीन कवियों द्वारा किसी विशिष्ट  यानी (Specific)  जैसे केवल अलंकार,  या  केवल रस का , या गुण का , या फिर केवल दो जगह पर काम किया जाए तो उसे हम विशिष्टांग विवेचन के नाम से जानते हैं ।...मतलब किसी Specific जगह को पकड़ कर उस पर काम करना।


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 श्रृंगारिकता

 रीतिकाल में  श्रृंगारिकता  पर बहुत ध्यान दिया गया । इसमें संयोग और वियोग श्रृंगार के दोनों रस देखने को मिलते हैं । इस काल में भक्ति पूर्ण राधा - राधिका केवल आम नायक - नायिका बनकर रह गए । रीति काल में कवियों में श्रृंगार के संयोग पक्ष का वर्णन अधिक किया गया है। रीतिकालीन काव्य में वर्णित संयोग पक्ष में मार्मिकता का भाव देखने को मिलता है इसमें नारी का नख - शिख का वर्णन देखने को मिलता है  । संयोग श्रृंगार के उदाहरण है
                बतरस लालच लाल की
                मुरली धरी लुकाय
                सौहं करै भौहनु हंसै
                दैन कहैं नटि जाय

 इसके विपरीत वियोग श्रृंगार का उदाहरण है
               सुनत पथिक मुंह मास निसि
               लुए चलत उहि गाम
               बिनु बुझे बिनहु  कहै
              जियत बिहारी बाम।।

अलंकारिकता

  रीतिकाल में कवियों ने अलंकार का सुंदर प्रयोग किया है । यह प्रयोग काव्य के लिए आवश्यक माना गया। रीतिकाल में उपयोग होने वाले अलंकारों में शब्दालंकार और अर्थालंकार का प्रमुख स्थान है । आचार्य केशवदास ने तो यहां तक कहा कि "अलंकार विहीन कविता, कविता नहीं हो सकती" ।




बहुज्ञता एवं चमत्कार प्रदर्शन
रीतिकाल के कवि किसी एक विषय के नहीं अपितु बहू विषयों के ज्ञानी थे । इसी कारण रीतिकालीन काव्य में हमें चमत्कार के दर्शन भी होते हैं।  जैसे - रीतिकाल के प्रमुख कवि बिहारी को  - गणित ,  कामशास्त्र , चित्रकला , पुराण , नीति , लोकशास्त्र इन सभी विषयों का ज्ञान था ।

भक्ति और नीति

  इस काल में भक्ति एवं नीति से संबंधित दोहे लिखे गए । बिहारी द्वारा रचित  - बिहारी सतसई में 70 दोहे लिखे गए जो भक्ति से संबंधित है ।  इसी प्रकार नीति से संबंधित दोहे भी लिखे गये  जिनको लिखने वालों में प्रमुख लेखक  - घाघ , बेताल , गिरिधर है ।  डा°  नागेंद्र "रीतिकाल का कोई भी कवि भक्ति भावना से  हीन नहीं है । हो भी नहीं सकता था क्योंकि भक्ति उनके लिए मनोवैज्ञानिक आवश्यकता थी"

 नारी भावना

रीतिकाल में नारी को केवल विलास और भोग की वस्तु समझा गया । वहां नारी का चित्रण केवल विलासिर्जा और प्रेमिका के रूप में दिखाई देता है । उसके आंतरिक सौंदर्य को छोड़कर स्त्री के बाहरी सौंदर्य का वर्णन रीतिकाल में किया गया । रीतिकाल में नारी के अन्य रूप मां , बहन , बेटी आदि लोगों को भुला दिया गया ।

प्रकृति वर्णन

 रीति काल में नारी के चित्रण के  साथ - साथ प्रकृति का भी वर्णन मिलता है और कहीं-कहीं इन दोनों को मिलाकर पेश किया गया । रीतिकाल में प्रकृति वर्णन में अलंकारिकता तथा उद्दीपन दिखाई पड़ता है । ऐसे ही एक कवि सेनापति है । जिन्होंने ऋतुवर्णन लिखा । रीतिकाल के कवियों ने संयोग और वियोग दोनों प्रसंगों के साथ ऋतुओं का वर्णन किया।

वीर काव्य का निर्माण

 वीर काव्य  इस काल की एक प्रवृत्ति है । इस काव्य धारा के प्रमुख कवि भूषण है  । भूषण का काव्य युग - प्रेरणा की उपज था । भूषण ने  शिवाजी और छत्रसाल को नायक बनाकर उनकी शौर्य गाथा का वर्णन किया । इसके अतिरिक्त लाल , सूदन तथा पद्माकर ने भी वीर काव्य भी लिखा । वस्तुतः उस काल में  मुसलमानी शासकों का आक्रमण हो रहा था । जिसके विरोध में शिवाजी , गुरु गोविंद सिंह , महाराणा प्रताप सिंह , बंदा बैरागी ने तलवार उठाई । जिनका वर्णन इन कवियों ने वीरतापूर्वक किया ।

काव्य रूप

 रीतिकालीन कवियों ने दरबार में राजाओं की वाहवाही लूटने के लिए मुक्तक काव्य की रचना की . इस काल में काव्य में दोहो , छंदों , कविता ,सवैया , चौपाई आदि का प्रयोग हुआ .

 ब्रज भाषा का प्रयोग

इस काल में ब्रज भाषा का प्रयोग किया गया क्योंकि इस भाषा में अलंकारिकता तथा कोमल रसों की अभिव्यक्ति करना सरल है। डा० नगेंद्र के अनुसार ....."भाषा के प्रयोग में इन कवियों ने एक खास नाजुक मिजाजी बढ़ती है इनके कार्यों में किसी भी ऐसे शब्द की गुंजाइश नहीं है जिसमें माधुर्य नहीं है .........अक्षरों के गुम्फन में इन्होंने कभी भी त्रुटि नहीं की । संगीत के रेशमी तारों में इनके शब्द माणिक्य - मोती की तरह  गुँथे हुए हैं।"

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