Hindijumla_main_add

Ritikaal /Ritikalin kavita ki prisatbhumi / रीतिकालीन कविता की पृष्ठभूमि

        रीतिकालीन कविता की पृष्ठभूमि
        (संवत् 1700 से संवत् 1900 तक

     
किसी युग विशेष के साहित्य को समझने के लिए अथवा मूल्यांकन के लिए उस युग के की विभिन्न परिस्थितियों तथा युगीन वातावरण को जाना परम आवश्यक होता है । क्योंकि हर युग उस काल की राजनीतिक , समाज , संस्कृति , साहित्य , कला आदि से प्रभावित होता है । हिंदी साहित्य का रीतिकाल भी इसका अपवाद नहीं है । इस युग में श्रृंगार व सौंदर्य कामुकता पर जोर दिया गया । रीतिकाल में राधा  - कृष्ण भक्ति को  प्रेम की आम नायक - नायिका के रूप में बदलते हुए देखा बदलते हुए  गया।

 आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने हिंदी साहित्य के मध्यकाल का विस्तार (1375 -  1900  वि°) तक माना है । इसे दो खंडों में बांटा गया है :-
  पूर्व मध्य काल / भक्ति काल  (सं 1375-1700 वि°)
  उत्तर मध्यकाल / रीतिकाल  (सं 1700-1900वि°)
वास्तव में संपूर्ण मध्यकाल की साहित्यिक प्रवृत्ति भक्ति और श्रृंगार परक  रही है। उनमें लोकमंगल और रंजन प्रवृत्ति की प्रधानता थी किंतु रीतिकालीन कविता सामान्य जन से कटकर राज दरबारों में आई ।रीतिकालीन पृष्ठभूमि को हम निम्नलिखित वर्गों में विभाजित कर सकते हैं :-
     

 दरबारी पृष्ठभूमि
 यह काल में कवि  दरबारी वातावरण से बुरी तरह प्रभावित थे।  इन्हें वही आश्रय और सम्मान देकर आश्रयदाता यश और सम्मान प्राप्त करता था ।विक्रमादित्य और भोज ऐसे ही गुणज्ञ शासक थे  ; किंतु जैसे - जैसे राजाओं की गुणज्ञता श्रीण होने लगी ,  दरबारों में रूढ़िवादिता बढ़ने लगी । भाव की गंभीरता के अभाव में कविता में केवल प्रदर्शन की प्रवृत्ति शेष रह गई । मुगल काल में दरबारी संस्कृति पूरी तरह प्रभावशाली थी परंतु औरंगजेब के शासन में उसका पतन होने लगा इसके बाद कवियों ने स्वतंत्रतापूर्वक काव्य रचना  करने लगे ।

 ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
जिस समय रीतिकाल का आरंभ हुआ सामंत व शासक अपनी विलासिता में अपने कर्तव्यों को भूल बैठे थे । शाहजहां के पश्चात उसके पुत्रों में सत्ता का संघर्ष हुआ और शिकोह की हत्या कर औरंगजेब गद्दी पर बैठा , जो एक कट्टर सुन्नी शासक था ।  जिसके समय काव्य  , कला , संगीत का पतन हुआ । औरंगजेब के बाद मुगल वंश में कोई अच्छा  शासक नहीं हुआ । उसके फलस्वरुप विदेशी आक्रमण हुए ।नादिरशाह और  अहमदशाह अब्दाली ने प्रजा को लूटा और हर तरफ कत्लेआम मचा दिया । यही हाल अंग्रेजों के साथ बक्सर के युद्ध में हुआ|  यदि यह राजा - महाराजा आक्रमणकारियों से युद्ध करते तो हिंदी के कवियों को भी  शौर्य वह वीरगाथा का भाव जगाने की प्रेरणा मिलती।

सामाजिक पृष्ठभूमि
 रीतिकाल में समाज का हार्स हुआ। एक उक्ति है - यथा राजा तथा प्रजा अर्थात जैसा राजा होगा वैसे ही प्रजा भी होगी । अकबर , जहांगीर , शाहजहां की अनेक पत्नियां होने के कारण सामंत वर्ग पर भी इसका प्रभाव पड़ा । समाज में स्त्रियों का शोषण होने लगा । स्त्रियों की स्थिति दयनीय  हो गई । समाज   कुप्रथाओं और अंधविश्वास से ग्रस्त था । कवि प्रजा वर्ग में पैदा होते थे  - लेकिन प्रजा के पास उनकी कविता सुनने को न तो धन था  ,न समय इसलिए कवियों को सामंत वर्ग की शरण लेनी पड़ी और उनके झूठे गुणगान गाने पड़े ।  वे लोक जीवन की त्रासदी की चर्चा करके राजा के कोपभाजन का कारण नहीं बनना चाहते थे।

सांस्कृतिक पृष्ठभूमि
 दरबारों में संगीत कला , चित्रकला , स्थापत्य का पोषण हो रहा था । हिंदू दरबारों में जिन कलाओं पोषण मिला , वह भी ईरानी रंग में रंग गई।

 चित्रकला
 चित्रकला चाहे किसी भी रूप में हो उसमें विलासिता और प्रदर्शन की ही प्रमुखता होती थी । पौराणिक आख्यानों या व्यक्ति चित्रों में कोई मौलिकता  या सजीवता  नहीं दिखती।

 स्थापत्य कला
जहांगीर ने वास्तुकला में विशेष ध्यान दिया । अकबर के शासन काल में लाल पत्थरों से किले बनाए जाते थे ।   शाहजहां ने अपना सुक्ष्म कला  प्रेम दर्शाते हुए जामा मस्जिद और ताजमहल , हुमायूं के मकबरे के आधार पर निर्मित करवाया।

संगीत कला
 अकबर के समय संगीत का चरम उत्कर्ष हुआ । तानसेन उस के नवरत्नों में से एक था । जहांगीर के समय "संगीत दर्पण" जैसे संगीत शास्त्र का ग्रंथ तैयार हुआ  । शाहजहां के समय गंभीरता और उदात्तता के स्थान पर कोमल रागों का प्रयोग हुआ । औरंगजेब ने अपने समय में इन सब हिंदू - मुस्लिम आमोद - प्रमोद को बहिष्कृत कर दिया । मुहम्मदशाह 'रंगीला' ने अपने दिल्ली दरबार में पुनः संगीतकारों को सुशोभित किया ।

 धार्मिक पृष्ठभूमि
इस काल में धर्म का पतन हुआ । बाह्यडम्बरों और अंधविश्वास से समाज ग्रसित हो चुका था । सूरदास की राधा की भक्ति एक रमणी के प्रेम  में परिवर्तित हो चुकी थी  मंदिर के पुजारियों का नैतिक पतन हो चुका था । प्रेम मूलक भक्ति कामुकता में बदल गई थी ।

 साहित्यिक परिस्थितियां
रीति काल की साहित्यिक परिस्थितियां भी अनुकूल नहीं थी । भक्ति का स्थान  श्रृंगार ने ले लिया था ।  रीतिकाल काव्य में ललित कलाओं की भारतीय सामंती परिवेश से पूर्णतः प्रभावित हुआ । अपने आश्रितों को प्रसन्न करने के लिए कवि राजाओं की प्रशंसा अपनी रचनाओं में करते थे । कला और साहित्य केवल मनोरंजन का साधन बनकर रह गए थे। इस समय का साहित्य अपने आदर्श उच्च दर्शन से गिर गया था। अधिकांश कवि संस्कृत के आचार्यों की नकल कर के लक्षण और उदाहरण ग्रंथ लिखने में लीन थे । फिर भी भूषण जैसे कवियों ने इस काल में कुछ वीर रस पर काव्य रचा।

मुगल दरबार में अब फारसी भाषा  प्रचलित थी      और हिंदी कलाएं भी इसमें  रंगने लगी थी । इस प्रकार काव्य कला के प्रदर्शन की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही थी। डॉ°  शिव कुमार शर्मा ने इस बारे में लिखा है  " इसकी (श्रृंगारिकता) दोष रीतिकालीन साहित्यकार पर नहीं माढ़ा जा सकता इसका बहुत कुछ दायित्व तत्कालीन नरेशों की मनोवृति और उस समय के चतुर्दिक व्याप्त वातावरण पर है । हिंदी कवि को उस समय के दरबारी फारसी कवि से होड़ लेनी पड़ रही थी।"

Post a Comment

3 Comments

  1. Plz make content on Ritikal ki Pravartiya

    ReplyDelete
  2. Nice .. history knowledge for us

    ReplyDelete
  3. explore all the details about ritikaal . This is good but not enough

    ReplyDelete