काल-विभाजन और नामकरण
काल - विभाजन की समस्याएं
हिंदी साहित्य को पढ़ने में सबसे पहले यह प्रश्न उठकर सामने आता है कि किस - प्रकार से इस का काल - विभाजन किया जाए ताकि इसको आसानी से पढ़ा व समझा जा सके । साथ ही इस को उस समय काल के साथ जोड़ कर देखना आसान रहे ताकि हम यह भी जान पाएं कि उस युग में इस प्रकार की रचना के क्या कारण रहे । इसके लिए आवश्यक है कि उस समय के इतिहास को जानकर काल - विभाजन की तरफ आगे बढ़े क्योंकि बिना ठोस इतिहास दृष्टि से सुसंगत काल विभाजन नहीं किया जा सकता और बिना काल विभाजन के इतिहास का अध्ययन कठिन है क्योंकि इसमें कई समस्याएं सामने आती हैं जो निम्नलिखित हैं:-
3) साहित्य के इतिहास में और राजनीतिक इतिहास में अक्सर समानता नहीं होती । अर्थात जहां साहित्य में आदिकाल का समय दिखाई देता है वही राजनैतिक इतिहास का मध्ययुग शुरू होता है अर्थात दोनों में काफी अंतर दिखाई पड़ता है।
काल -विभाजन के आधार
आज हम जानेगें कि काल - विभाजन के क्या - क्या आधार है अर्थात किन किन बातों को ध्यान में रखते हुए काल - विभाजन को किया गया या फिर किया जाता है ? इसके लिए क्या-क्या आवश्यक बातें होती और कौन-कौन से मुख्य चीजें हैं जो उसमें अपनी भूमिका निभाती है।पुरानी -परिपाटी
पुरानी परिपाटी की संकल्पना से साहित्य का विभाजन करने में सरलता होती है । इससे हम उन गलतियों से बच जाते हैं जहॉ काल विभाजन के निर्णय में अराजकता की संभावना होती है।अंतः - प्रकृति
काल की अंतः प्रकृति को समझने में बड़ी सूक्ष्म दृष्टि की जरूरत होती है नहीं तो , कोई बड़ी ऐतिहासिक भूल हो सकती है । इस सूक्ष्म दृष्टि से युग की मनोभूमि और उसके समाज के मन को परखकर एक दूसरे की मनोभूमि से अलग किया जा सकता है।संधि - बिंदु
भक्तिकालीन कविता की प्रेम की आध्यात्मिकता , रीति कविता के श्रृंगार में बदल जाती है । इस प्रकार संधि बिंदु को पहचानने के बाद ही युग विभाजन को एक प्रमाणिक आधार मिलता है ।जनता की अभिरुचि
जनता की अभिरुचि एक विधा के स्थान पर दूसरी विधा को प्रतिष्ठित करती है । उदाहरण के लिए भारतेंदु युग में नाटकों को महत्व का मूल कारण जनरुचि रही थी । वही उपन्यासों की बढ़ती लोकप्रियता के कारण नाटकों का र्हास हुआ और उपन्यास एक महत्व विधा के रूप में प्रतिष्ठित हुआ।विधाओं की दृष्टि से दो युग में अंतर
नाटकों के स्थान पर उपन्यासों का लोकप्रिय होना एक महत्वपूर्ण योग को प्रारंभ होने का संकेत भी है ।जैसे भारतेंदु युग से द्विवेदी युग में पहुंचना ।लोक रुचि में अंतर
साहित्य में ऐसी दुर्घटना होती है कि लोग - रुचि और सत्ता की रुचि में अंतर होता है । जैसे रीतिकाल में जहां लोक - रुचि समाज के उत्थान में थी और वहीं रीतिकाल में महाराजाओं के वर्णन में बढ़-चढ़कर पुस्तके लिखी जा रही थी । इसका कारण जनता की रुचि नहीं थी, राजा महाराजाओं की रुचि थी।नामकरण के आधार
नामकरणकाल - विभाजन और नामकरण एक दूसरे के पूरक है । जिन मुद्दों को ध्यान में रखकर कार्य - विभाजन का निर्णय किया जाता है उन्हीं को ध्यान में रखकर नामकरण भी किया जा सकता है।
रचना की प्रवृत्ति
रचना की प्रवृत्ति काल - विभाजन का महत्वपूर्ण आधार रही है , उसी तरह वह नामकरण का भी आधार रही है । रचना की अंतर्वस्तु कि केंद्रीयता को ध्यान में रखकर कालखंड को नामांकित कर दिया जाता है । रचनाओं की अधिकता से प्रवृत्ति का औसत निकालकर ठीक लगने वालों वाले नाम से साहित्य कालखंड का नामकरण करने का प्रचलन है।
नामकरण में संकट
जब अंतर्विरोध का स्वर मुखर हो जाता है । ऐसी स्थिति में साहित्य की मुलगामी धारा , जो केंद्रीय प्रवृत्ति का प्रतिनिधित्व करती है , उसके प्रतिरोध में बहने वाली धारा का महत्व भी उतना ही हो जाता है ।इस प्रतिरोध की धारा में जीवन और साहित्य का मूल्यवान तत्व प्राप्त होता है ।आंदोलन
समाज और हमारे सांस्कृतिक जीवन में कुछ आंदोलन ऐसे होते हैं जिनका प्रभाव जीवन के विविध क्षेत्रों में दिखाई पड़ता है और नामकरण भी किया जाता है जैसे स्वच्छंदतावाद या भक्ति काल ।व्यक्ति के नाम पर युग
साहित्य में कभी - कभी ऐसा होता है कि व्यक्ति की भूमिका इतनी महत्वपूर्ण हो जाती है कि उसके नाम पर एक युग ही चल पड़ता है । जैसे :- भारतेंदु युग , द्विवेदी युगनामकरण का आधार घटना
नामकरण का आधार घटना को भी माना जाता है । जैसे:- स्वतंत्रता भारतीय इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना थी। भारतीय साहित्य के इतिहास में भी इस घटना को आधार बनाया गया है । "स्वातंत्र्योत्तर साहित्य" नाम से यह घटना लोकप्रिय भी हुई है । घटना के आधार पर नामकरण रखने से पूर्व उस घटना के प्रभाव का मूल्यांकन करना होता है।अतः इन सभी आधारों पर काल विभाजन की समस्याओं का निदान कर उनका नामकरण भी किया जाता है और इसी आधार पर युगों के विभाजन की समस्याओं का निदान कर उसे पाठकों के पढ़ने हेतु सरल बनाया जाता है । इस प्रकार से काल - विभाजन और इतिहास के संबंध का ज्ञान मनुष्य सरलता से प्राप्त कर पाता है ।
4 Comments
Very Nice✍️
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया
DeleteSuch a peace of art
ReplyDeleteThnx
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