श्रीकांत वर्मा
भटका मेघ २
भटक गया हूँ---
मैं असाढ़ का पहला बादल
श्वेत फूल-सी अलका की
मैं पंखुरियों तक छू न सका हूँ
किसी शाप से शप्त हुआ
दिग्भ्रमित हुआ हूँ।
शताब्दियों के अंतराल में घुमड़ रहा हूँ, घूम रहा हूँ।
कालिदास मैं भटक गया हूँ,
मोती के कमलों पर बैठी
अलका का पथ भूल गया हूँ।
मेरी पलकों में अलका के सपने जैसे डूब गये हैं।
मुझमें बिजली बन आदेश तुम्हारा
अब तक कड़क रहा है।
आँसू धुला रामगिरी काले हाथी जैसा मुझे याद है।
लेकिन मैं निरपेक्ष नहीं, निरपेक्ष नहीं हूँ।
मुझे मालवा के कछार से
साथ उड़ाती हुई हवाएँ
कहाँ न जाने छोड़ गयी हैं !
अगर कहीं अलका बादल बन सकती
मैं अलका बन सकता !
मुझे मालवा के कछार से
साथ उड़ाती हुई हवाएँ
उज्जयिनी में पल भर जैसे
ठिठक गयी थीं, ठहर गयी थीं,
क्षिप्रा की वह क्षीण धार छू
सिहर गयी थीं।
मैंने अपने स्वागत में तब कितने हाथ जुड़े पाये थे।
मध्य मालवा, मध्य देश में
कितने खेत पड़े पाये थे।
कितने हलों, नागरों की तब
नोकें मेरे वक्ष गड़ी थीं।
कितनी सरिताएँ धनु की ढीली डोरी-सी क्षीण पड़ी थीं।
तालपत्र-सी धरती,
सूखी, दरकी, कबसे फटी हुई थी।
माँयें मुझे निहार रही थीं, वधुएँ मुझे पुकार रही थीं,
बीज मुझे ललकार रहे थे,
ऋतुएँ मुझे गुहार रही थीं।
मैंने शैशव की
निर्दोष आँख में तब पानी देखा था।
मुझे याद आया,
मैं ऐसी ही आँखों का कभी नमक था।
अब धरती से दूर हुआ
मैं आसमान का धब्बा भर था।
मुझे क्षमा करना कवि मेरे!
तब से अब तक भटक रहा हूँ।
अब तक वैसे हाथ जुड़े हैं,
अब तक सूखे पेड़ खड़े हैं,
अब तक उजड़ी हैं खपरैलें,
अब तक प्यासे खेत पड़े हैं।
मैली-मैली सी संध्या में
झरते पलाश के पत्तों-से
धरती के सपने उजड़ रहे हैं।
और इस नदी में कुछ लहरें हैं,
जो बहुत उदास है।
मैं भी एक नदी हूं, मुझ पर भी शाम है ,
मुझ पर भी
धुआं है ,
मुझ में भी लहरें हैं , जो बहुत उदास है
मुझको भी त्याग गए कुछ स्नेही,
मेरी भी नावें ले
चले गए कुछ यात्री,
मेरे भी गाने सब पालों की
ओट हुए।
मैं बहुत उदास हूं, बहुत ही उदास हूं।
क्या अब वे सुख सहचर कभी नहीं लौटेंगे?
क्या अब वे छायाएँ
यहां नहीं डोलेंगी?
क्या अब कोई मुझसे यह नहीं कहेगा-
"ओ प्रिय ! तुम
नहीं अकेलेेे।
मैं भी हूं।"
यदि मुझ में आज भी कटाव है, गति है,
तो इसलिए,
शायद कोई मुझ जैसा
उदास, मनमारा
कल मुझे तक आए।
और इस उदासी में एक गान गाय।
शायद कोई
दिया जलाए,
फिर यह कहे-
ओ प्रिय! तुम नहीं अकेले!
मैं भी हूं।
शाम है, धुआ है, एक नदी है
और उस नदी में
कुछ लहरें हैं
जो बहुत उदास हैं, बहुत ही उदास हैं।
1 Comments
Good Article
ReplyDeleteBest Article
Nice Article
Good Article
Good Article
informative Article
nice Article
superb Article
Good Article