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HARRAPAN CIVILIZATION ( हड़प्पा सभ्यता)

  हड़प्पा सभ्यता की विशेषताए

                         


                                    

 हड़प्पा सभ्यता का सूर्य जिस समय उदय हुआ उस समय तक अनेक देश अज्ञान के गर्त में डूबे हुए थे । यह सभ्यता बहुत पुरानी तथा आर्य से भी पूर्व की है ब्रिटिश काल में पुरातत्व विभाग की स्थापना के पश्चात प्राप्त हुए ऐतिहासिक साक्ष्यों  ने इस सभ्यता को सामने ला खड़ा किया। हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो की खुदाई ने भारत के हजारों वर्ष के पुराने इतिहास को अंधकार से प्रकाश में ला खड़ा किया। इन क्षेत्रों की खुदाई से आज से प्राप्त अवशेषों के आधार पर यह निष्कर्ष निकलता है कि यह सभ्यता जीवन के हर क्षेत्र में अग्रणी तथा प्रगतिशील थी।  इसकी विशेषताएं निम्नलिखित है:-

 हड़प्पा सभ्यता का विस्तार

  •  उत्तरी तथा दक्षिण भारत तक फैली है
  •  हड़प्पा मोहनजोदड़ो रोपड़ संथोल चंडीगढ़ मीताथल बनावली राखीगढ़ी आलमगीरपुर कालीबंगा लोथल और रंगपुरी इसके प्रमुख स्थल है
  •  हड़प्पा सभ्यता के लोग
  •  इस बारे में अनेक मतभेद पाए जाते हैं
  •  कुछ विद्वान कहते हैं हिंदी आर्य पहले आये
  • इतिहासकार कहते हैं कि ये सुमेरियन थे  इन्हें असुर दास कहते थे।
  • डॉक्टर हट्टन इन्हें द्राविड़ मानते हैं
  •   विश्वसनीय मत (कर्नल स्युअल और डॉ गुहा)
  • उन्होंने इन्हें चार नस्लों के लोग बताया इसका महत्वपूर्ण कारण हड़प्पा और मोहनजोदड़ो का व्यापार प्रसिद्ध केंद्र होना था।

काल

  • Johan Marshel         40000ई पू   - 2500ई पू
  • K.N. Shastri            3500ई पू    - 2500ई पू
  • other historian         3200ई पू    - 2700ई पू
  • Dr. wheeler             2800ई पू
  • Dr. Pushlakar          2800ई पू - 2200ई पू
  • V.K Smith               2500ई पू - 1500ई पू
  • मोसोपोटामिया मे सिन्धु सभ्यता के अवसेष
  • मोसोपोटामिया  3200  ई पू - 2750 ई पू की सभ्यता 
  • अनुमान है की सिन्धु घटी सभ्यता 5000 वर्ष पुरानी है 
  • वास्तविक ज्ञान के लिए सिन्धु घाटी की लिपि पढ़े जाने की प्रतीक्षा है .

 नगर योजना

  •  उच्च कोटि की नगर योजना
  • चण्डीगढ़ व इग्लैण्ड जैसे शहरों से सिंधु घाटी की तुलना
  • नगर चबूतरो से दूर थे गलियां अधिक चौड़ी सड़कें 20 फुट तक पूर्व से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण की ओर बनाई गई थी जो एक दूसरे को समकोण पर काटती थी ऐसा पवनों का ध्यान रखकर किया गया था 
  • सड़कों की चौड़ाई 36 फुट से भी अधिक थी शायद यह कोई राजमार्ग होगा।

१) निवास स्थान

  •  मकान पक्की  ईटों के थे.
  • मकान में सुर्खी गारा चूने का प्रयोग किया गया था.
  •  मंजिला मकान द्वार भिन्न प्रकार के थे.
  • छात्रों के लिए शहतीर वलियों और चट्टानों का प्रयोग किया गया था छत पर जाने के लिए सीढ़ियों का प्रबंध भी था.
  •  मकान हर प्रकार की सुविधा मकानों का हिस्सा सड़क वह गली की ओर निकला नहीं होता था सड़कों के मोड़ पर दीवारों को गोल किया जाता था.
  • मकान के दरवाजे और खिड़कियां सड़क की ओर कि नहीं खोलते थे.

२) विशाल भवन

  • मोहनजोदड़ो में मिला जो 230 फुट लंबा और 78 फुट चौड़ा था किसी का निवास स्थान होने का अनुमान.
  •  एक बड़ा हॉल शायद नगर पालिका हॉल.
  • गोदाम और शिक्षा संस्था भवन मिला है.
  • गोदाम चबूतरे पर बनाया गया था ताकि बाढ़ से सुरक्षित रह सके.
  • विशाल स्नानागार (लंबाई 180 फुट चौड़ाई 108 फुट है)
  • पक्का तालाब (लंबाई 39.5 फुट चौड़ाई 23.5 फुट) इसके 1 और 8 स्नानागार मिले हैं.
  •  गरम पानी की व्यवस्था व तालाब से बाहर पानी निकालने का प्रबंध.
  •  इस तालाब के समीप ही कुआं बना हुआ था जो इस बात की पुष्टि करता है. 

  Dr R K Mukherjee: The construction of such as swimming both reflective great credit on the engineering of those days

Dr AD Pusalkar : The texture of Mohenjo-daro in general as clean  utilitarian rather solid then beautiful.

                               


नालिया

  •  नालियों की व्यवस्था सुंदर थी या अधिकतर थकी हुई थी
  •  नागिन के ऊपर लगे पत्थरों को आसानी से हटाया जा सकता था
  •  घरों की छतों का पानी मिट्टी के पक्के पाइप द्वारा  नीचे लाने का विशेष प्रबंध था
  •  कुछ बरसाती नाले भी मिले हैं लोग सफाई का विशेष ध्यान रखते थे

 सामाजिक जीवन 

 भोजन

  • गेहूं चावल दूध सब्जियां गेहूं को ओखली में कूदकर आटा बनाया जाता था
  •  खजूर की गुठली आ व पशुओं की हड्डियां भी मिली है
  •  मछली पकड़ने के कांटे भी मिले हैं
  •  कछुओं की अनेक खोपड़ी  , जो यह सिद्ध करती है कि यह लोग मांसाहारी थे

 वेशभूषा

  •  मौसम के अनुसार सुती, ऊनी, रेशमी कपड़ों का उपयोग
  • पुरुष धोती व कंधे पर  शाल डालते थे

 आभूषण

  • पुरुष व स्त्री या दोनों आभूषण पहनते थे
  • हार कंगन अंगूठी चूड़ियां बालियां पांव में कड़े
  • अमीर लोग सोना चांदी हाथी दांत पहनते थे
  •  गरीब लोग तांबे के आभूषण पहनते थे

श्रृंगार

  • स्त्री पुरुष दोनों सिंगार प्रेमी थे.
  • स्त्रियां सुरमा, सुर्खी, सुगंधित तथा कस्य के दर्पण का प्रयोग करती थी और बालों को सँवारती थी।
  • पुरुष मुछें कलमें रखते थे व  बाल विचित्र ढंग से सवार थे ।
  •  बालों को संवारने के लिए हाथी दांत के कंघे का प्रयोग किया जाता था ।

  मनोरंजन

  •  घरेलू खेल खेले जाते थे
  • नाचना गाना मनोरंजन का साधन था
  • मोहरों से पता चलता है कि जुआ भी खेलते थे
  •  शतरंज खेला जाता था
  •  बच्चों के लिए अनेक प्रकार के खिलौने होते थे जो हाथी दांत, मिट्टी और  ताबे  के बने हुए होते थे
  •  एक नाचने वाली लड़की का चित्र भी मिला है. झुंझुनू और बैलगाड़ी आदि प्रमुख  खिलौने भी मिले हैं.

औषधियां

  • रोगों के उपचार के लिए औषधियों का प्रयोग किया जाता था.
  • खुदाई में शिलाजीत की डिबिया में मिली है. जिनका उपयोग औषधि के लिए किया जाता था.
  • हिरण के सींग कथा नीम के वृक्ष के पत्ते भी औषधि के रूप में प्रयोग किए जाते थे.

 कृषि

  •  लोगों का मुख्य  व्यवसाय कृषि था . गेहूं, जौ, कपास आदि की खेती की जाती थी. फल उगाए जाते थे.
  • अनाज को रखने के लिए गोदामों की व्यवस्था थी.

 पशुपालन

  • कृषि के कारण पशुओं का भी विशेष महत्व था.
  • गाय, बैल, बकरी, भेड़, कुत्ते और सूअर पाले जाते थे . इन पशुओं की हड्डियां भी मिली हैं .

 व्यापार

  •  व्यापार काफी उन्नत था । विदेशों से भी व्यापार होता था
  • व्यापार भूमि तथा समुद्री दोनों रास्तों से होता था तथा मिश्र तथा मोसोपटामिया   से उन लोगों के व्यापारिक संबंध थे.
  • दजला और फरात की घाटियों के बाजारों में सिंधु सभ्यता के लोगों का माल बिका करता था. अफगानिस्तान से सोना, चांदी से शीसा  मंगवाए जाते थे. वस्तु को तोड़ने के लिए तराजू और बट्टू का प्रयोग किया जाता था.
  •  हड़प्पा में कॉसें से की एक घड़ी मिली है .इस घड़ी पर निश्चित दूरी  पर चिह्न  लगे हुए हैं । यह घड़ी किसी पैमाने की तरह काम करती थी।
  •  व्यापार सिक्कों के द्वारा होता था। नदियां और पशु व्यापार के लिए प्रयोग होते थे । लोथल एवं रंगपुर  बंदरगाहें थी। जहां समुद्री जहाजों के बने हुए चित्र भी मिले हैं।

 कुटीर उद्योग

  • लोग कॉसा, पीतल और मिट्टी के बर्तन बनाने में निपुण थे। उच्च कोटि के खिलौने बनाते थे।
  • रुई काटना, कपड़े बुन्ना, ईट बनाना, मकान बनाना, आभूषण बनाना आदि का काम सुंदर ढंग से किया जाता था उनके उद्योग धंधे बहुत उन्नत थे।

 राजनीतिक जीवन

  • इसके बारे में कोई निश्चित ज्ञान नहीं होती। किंतु अनुमान लगाया जा सकता है कि उस समय राजनीतिक एकता थी।
  • उस समय के राजाओं और शासकों की उपाधियों का ज्ञान नहीं मिलता । फिर भी उनके कुशल शासन प्रबंधन का ज्ञान अवश्य होता है । उनके नियोजित नगरों सड़कों के निर्माण पर की गलियों और नालियों का प्रबंध सराहनीय है।  उस समय सरकार  प्रजा हितों का ध्यान रखती थी।
  • भूमि कर आय का मुख्य साधन था। गोदामों से इस बात का अनुमान लगाया जा सकता है।
  • लोगों के पास कुछ शस्त्र भी थे ।परंतु लोग शांतिर्पिय थे। उनके शस्त्र तांबे, काँसे, और सख्त पत्थर से बने होते थे । कुल्हाड़ी , परसे, भाले और छुरे उनके मुख्य  हथियार थे। सिंधु सभ्यता के लोग आक्रमणकारी नहीं थे । इसलिए उनके शस्त्र्  मुख्यत: बचाव के लिए थे।

 धार्मिक जीवन

 शिव की उपासना

  • मोहरो पर एक देवता की मूर्ति मिली है। इसके तीन मुख हैं। यह चित्र 4 पशुओं के साथ योग मुद्रा में है । जॉन मार्शल के अनुसार यह शिव जी का चित्र है। जिसके चारों और पशुओं के चित्र अंकित थे । दाहिने और हाथी और सिंह , बाई  गैंडा और भैंसा और सम्मुख एक हिरण आदि के चित्र विद्यमान है।

 मातृ देवी

  • मोहरों पर अर्धनग्न नारी का चित्र भी मिला है। उसकी कमर पर भाला है ।उसका विशेष वस्त्र है उसे मात्र देवी कहा गया । हिंदू धर्म में से शक्ति का नाम दिया गया था।

 मानव देवता 

  • अधिकतर देवताओं के चित्र मानव रूप में ही मिले हैं अर्थात सिंधु सभ्यता के लोग अपने देवताओं को मानव रूप में पूजते थे।

 मूर्ति पूजा

  • लिंग एवं योनि की अनेक मूर्तियों से सिद्ध होता है कि उन लोगों का मूर्ति पूजा विश्वास था ।
  •  इसकी उपासना  करके संभवत वे लोग ईश्वर की सृजनात्मक शक्ति की उपासना करते होंगे।

 पशु पूजा

  • खुदाई से पता चला है कि लोग कुबड़े बैल , बिल्ली, चीता आदि की पूजा करते थे पशुओं को देवता माना जाता था.
  • कुछ विशेष प्रकार के पशु जिनका आधा शरीर मनुष्य का था और आधा शरीर पर चुका था. कहीं आधा हाथी का और कहीं आधा सांड का इन विचित्र पशुओं की पूजा होती थी.
  • कुछ मोहरों  के नामों के चित्र से अनुमान लगाया जा सकता है कि उस समय नाग पूजा प्रचलित थी। सांड को शिव का वाहन मानकर उसकी पूजा भी की जाती थी।

 मृतक का अंतिम संस्कार

  • मृतकों का अंतिम संस्कार तीन प्रकार से किया जाता था
  • शवों को जलाकर, दफनाकर और उन्हे  छतों पर फेंक कर अंतिम संस्कार किया जाता था।

 अन्य धार्मिक विश्वास

  • सिंधु सभ्यता के लोग नीम और पीपल की पूजा करते थे . घुघ्गी पक्षी की पूजा का प्रमाण भी मिलता है।
  • लोक अंधविश्वासी थे और जादू दोनों पर विश्वास रखते थे. कुछ ताबीजो, मालाओं, सिक्कों से इस बात के संकेत मिलते हैं.
  • इसे सिद्ध  हो जाता है कि सिंध घाटी के  लोग किसी एक धर्म के अनुयाई ना होकर मिश्रित धर्मों के अनुयाई थे।

 कला

  • हड़प्पा के लोग लेखन कला से परिचित थे। खुदाई से कला कि लगभग 400 मोहरे  मिली है . उनकी लिपि चित्रमयी  है .यह लिपि मिश्र एवं सुमेर  देशों की लिपि से मिलती है . इसलिए  किसी के  समझाने के बाद ही नए तथ्य सामने आएंगे .कुछ मोहरों  पर पक्षियों और पशुओं के चित्र भी मिले हैं. बैल और साड़ो के चित्र उनके चित्र कला के सर्वोत्तम नमूने है . बर्तनों पर भी प्रकृति के दृश्य दर्शाए गए हैं कुछ मकानों में भी चित्रकारी मिलती है.
  • मूर्तिकला के प्रमाण मिलते हैं. नरम नरम पत्थर और भूरी  चट्टानों को काटकर सुंदर मूर्तियां बनाई जाती थी.
  • वे लोक संगीत एवं कला में भी निपुण थे. तबले और ढोलों के अनेक चित्र मिले. पक्षियों के पंखों से सीटी बजाने का काम लिया जाता था . वे लोक नृत्य कला में भी निपुण थे.

 हड़प्पा सभ्यता के लोग होने के कारण

विद्वानों का मानना है कि हड़प्पा सभ्यता के लोगों ने के निम्नलिखित कारण हो सकते हैं . ऐसा माना गया या तो वह बाढ़ के कारण लुप्त हो गई या फिर किसी विदेशियों ने आक्रमण कर दिया होगा. क्या भूकंप इसका एक कारण रहा होगा ?  या फिर अन्य किसी प्राकृतिक आपदा द्वारा यह सभ्यता नष्ट हो गई होगी . या फिर सिंधु नदी द्वारा रास्ता बदल देने के कारण यह भूमि बंजर हो गई होगी और लोग इस स्थान को छोड़कर चले गए होंगे.  कोई एक कारण हमें हड़प्पा सभ्यता की लुप्त होने का नहीं मिलता। हम आज भी इस बात से अनभिज्ञ हैं।

B.G Gokhle के अनुसार मानव और प्रकृति ने सम्मिलित रूप से इस सभ्यता का पूर्ण विनाश कर दिया किंतु लुप्त होने के बाद भी और सभ्यता भारत की महानता की प्रतीक है ।




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